कोई भी नेता जब चुनाव के वक्त अपनी शिकायत लेकर जनता के सामने जाता
है या फिर किसी पुराने मसले पर उसका ज्ञानचक्षु खुलता है तो जनता के मन में सवाल
उठता है कि ये मसला इस वक्त क्यों ? चुनाव के वक्त ही क्यों ? इस सवाल के उत्तर से देश की अवसरवादी राजनीति की तस्वीर
उभरती है । अभी हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है । भारतीय जनता पार्टी के
उत्तर प्रदेश से सांसद, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी के साथ ।
उन्हें इन दिनों रोहिता वेमुला की याद सता रही है । खुदकुशी के पहले रोहित वेमुला
के पत्र को पढ़कर उनका कलेजा मुंह को आ रहा है । रोहित वेमुला के दुख से इतने
पीड़ित हैं कि उनको रोना तक आ रहा है । यह उन्होंने खुद इंदौर में एक कार्यक्रम
में स्वीकार किया है । हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला
ने जनवरी दो हजार सोलह में खुदकुशी की थी । खुदकुशी के सालभर से ज्यादा बीत गए,
लेकिन वरुण गांधी ने कभी अपनी पीड़ा का इजहार नहीं किया । संसद से लेकर सड़क तक
रोहित वेमुला के मुद्दे पर हंगामा हुआ । पक्ष विपक्ष में वार-पलटवार हुए, धरना
प्रदर्शन हुए, लेकिन वरुण गांधी को रोना नहीं आया । अगर उस दौर में उनको रोना आया
भी होगा तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने दुख को प्रकट नहीं किया । वरुण गांधी
को सिर्फ रोहित वेमुला की ही याद नहीं आई उन्होंने मध्यप्रदेश के एक स्कूल में
दलित छात्रों के साथ मिड डे मील में भेदभाव का मुद्दा उठाते हुए भी चिंता जताई । दलितों
के अलावा वरुण को अचानक से किसानों की भी याद आ गई । उन्होंने तो फरार उद्योगपति
विजय माल्या को लेकर भी अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने आरोप
लगाया कि कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से पचास हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं
लेकिन विजय माल्या नौ हजार करोड़ लेकर चंपत हो गया । वरुण के मुताबिक सरकार ने
उसके जिस गारंटर को गिरफ्तार किया है उसके खाते में सिर्फ ग्यारह सौ रुपए हैं । उन्होंने
गरीबों के लिए सरकारी कर्जा माफी योजना पर भी सवाल खड़ा किया । अब हम जरा गहराई से
वरुण गांधी के उन दोनों बयानों को मिलाकर देखें । वरुण गांधी के बयानों से दलित और
किसानों को लेकर उनकी चिंता को साफ तौर रेखांकित किया जा सकता है । अब सवाल यही
उठता है कि यूपी के सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद को अचानक किसानों और दलितों की याद
क्यों सताने लगी । क्यों वो इनके हालात को लेकर इतने व्यथित हो गए कि अपने दुख को
उनको सार्वजनिक करना पड़ा ।
हाल के सियासी दौर को परखते हैं । इस वक्त यूपी में विधानसभा चुनाव
जारी हैं । तीन चरणों को चुनाव संपन्न हो चुका है और चार चरणों का चुनाव बाकी है ।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में किसानों की कर्जा माफी एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है ।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों किसानों को लेकर चिंतित दिखना चाहते हैं । राहुल गांधी
तो चुनाव के ऐलान के पहले ही प्रधानमंत्री से जाकर इस मसले पर मिल भी आए थे । सभी
दलों के चुनावी घोषणा पत्र में किसानों को लेकर चिंता और उनके भले के लिए तरह-तरह
की योजनाओं का वादा है । दलितों को लेकर मायावती अपनी गोलबंदी मजबूत कर रही है ।
दलितों में अपना खोया जनाधार हासिल करने के लिए कांग्रेस भी रोहित वेमुला के मसले
पर पिछले साल आक्रामक दिखी थी और यूपी में भी गाहे बगाहे उसके नेता रोहिक वेमुला
का जिक्र छेड़ देते हैं । विधानसभा चुनावों के इस कोलाहल भरे सियासी समय में
बीजेपी सांसद वरुण गांधी जब अपनी ही पार्टी को कठघरे में खड़ा किया तो उन्होंने
विपक्ष के हाथ में अपनी पार्टी को घेरने का अस्त्र दे दिया, चाहे या अनचाहे इसका
फैसला तो पार्टी के आला नेता करेंगे ।
यूपी विधानसभा चुनाव में वरुण गांधी को भारतीय जनता पार्टी ने हाशिए
पर रखा हुआ है । कई दौर के चुनाव प्रचार में उनको स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर
रखा गया । अब इस बात को समझना होगा कि जो नेता उत्तर प्रदेश की रहनुमाई करने का
ख्वाब देख रहा हो, जो नेता उत्तर प्रदेश की सियासत के केंद्र में खुद को रखने के
लिए प्रयत्नशील हो और उसको उसकी ही पार्टी परिधि पर भी ना रखे या चुनाव के दौरान
उसको लगभग हाशिए पर रखे तो नेता की पीड़ा स्वाभाविक है । वरुण गांधी के साथ यही हो
रहा है । लगातार अपने को हाशिए पर धकेले जाने से उनकी पीड़ा बढ़ती चली गई और जब
मौका मिला तो उन्होंने अपने बगावती तेवर दिखा दिए । हलांकि बगावती कहना थोड़ी
जल्दबाजी है लेकिन संकेत तो ऐसे ही दिए हैं ।
अब अगर हम इस बात का विश्लेषण करें कि बीजेपी ने वरुण गांधी को हाशिए
पर क्यों रखा । सरनेम में गांधी, युवा चेहरा, आक्रामक भाषणों के लिए मशहूर वरुण
गांधी के साथ बीजेपी ने ऐसा क्यों किया । पिछले दिनों वरुण गांधी पर बेहद संगीन
इल्जाम लगे थे और उनकी कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें भी सामने आई थीं । इन आरोपों में
कितनी सचाई है, या उन आपत्तिजनक तस्वीरों का सच क्या है यह तो जांच एजेंसी और
अदालतों का काम है लेकिन राजनीति में दाग का असर लंबे समय तक रहता है । बीजेपी,
यूपी में महिलाओं की सुरक्षा और अस्मिता को मुद्दा बनाकर चुनाव मैदान में उतरी है
और अगर ऐसे में वरुण गांधी को पार्टी आगे करती तो संभव है वरुण पर लगे आरोप और
उनकी आपत्तिजनक तस्वीरें सरेआम उछाली जाती । इस तरह के चुनावी उलझनों या परेशानी
से बचने के लिए बीजेपी ने उनको यूपी के चुनावी समर से बाहर रखा । वरुण गांधी को
चाहिए था कि उत्तर प्रदेश चुनाव तक अपने को संयमित रखते और अपने उपर लगे आरोपों के
कमोजर होने के बाद अपनी सियासी चाल चलते । यूपी चुनाव के बीच उनके ये तेवर उनकी
पार्टी में उनके विरोधियों को उनके घेरने का मौका दे सकती है ।
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’शिव का देवत्व और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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