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Thursday, February 2, 2017

लव-हेट रिलेशनशिप की सियासी मिसाल

अंग्रेजी में एक जुमला बहुत फेमस है वह है लव हेट रिलेशनशिप । मतलब कि एक ऐसा रिश्ता जिसमें मोहब्बत और घृणा साथ-साथ चलती है । महाराष्ट्र की सियासत में देखें तो बीजेपी और शिवसेना का जो गठबंधन है वह लव हेट रिलेशनशिप की शानदार मिसाल है । जब से उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभाली है और बीजेपी पूरे देश में मजबूत हुई है तब से इस रिलेशनशिप को ये नया नाम मिला है । अमूमन हर चुनाव के वक्त और मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार के वक्त दोनों सहयोगियों में जमकर तलबारबाजी होती है लेकिन अंतत: सब सामान्य हो जाता है । अगर हम इतिहास में ना भी जाएं तो विधानसभा चुनाव के वक्त गठबंधन टूटने के पहले रूठना-मनाना से लेकर तमाम तरह की सियासी ड्रामेबाजी हुई लेकिन दोनों दल अलग अलग चुनाव लड़े । चुनाव के दौरान तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोपों के तीर चले । चुनाव के बाद जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार में शिवसेना जूनियर पार्टनर के तौर पर शामिल हो गई । अकेले दम पर बहुमत का दावा दोनों दलों ने किया था लेकिन दो सौ अठासी सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी को एक सौ बाइस तो शिवसेना को तिरसठ सीटों पर संतोष करना पड़ा था । तमाम मान-मनौव्वल और सियासी जोड़तोड़ के बाद चुवाव पूर्व टूटा गठबंधन सत्ता के फेविकोल से जुड़ गया । इसी तरह से जब नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्रीय कैबिनेट के गठन से लेकर उसके विस्तार के वक्त भी ड्रामेबाजी देखने को मिली थी। मंत्रिमंडल की सीटों को लेकर लेकिन उस वक्त बीजेपी के कड़े रुख ने शिवसेना को समझौते पर मजबूर कर दिया था ।
गठबंधन के इस सियासी रंगमंचच पर नया ड्रामा जारी है बीएमसी यानि वृहन्नमुंबई नगरपालिका परिषद के चुनाव को लेकर । शिवसेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने पिछले दो दशक से ज्यादा से जारी गठबंधन को तोड़ने का एलान कर दिया और कहा कि गठबंधन में रहकर हमने पच्चीस साल खराब किए । उन्होंने भविष्य में बीजेपी से किसी तरह के गठबंधन से भी इंकार किया । बीजेपी के नेताओं ने उद्धव को मर्यादा में रहकर बात करने की नसीहत दी और गठबंधन धर्म की याद दिलाई । आज से करीब अट्ठाइस साल पहले जब बाला साहब ठाकरे और अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्नीस सौ नवासी में इस गठबंधन की नींव रखी थी उस वक्त ये तय हुआ था कि अगर कभी दोनों दलों के बीच अलग होने की नौबत आती है तो नेता साथ चाय पिंएंगे और अलग अलग रास्ते पर चल पड़ेंगे । लेकिन अब अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय नहीं हैं और इस गठबंधन के दो शिल्पकार बाल ठाकरे और प्रमोद महाजन इस दुनिया में ही नहीं रहे, लिहाजा चाय पीकर मर्यादित ढंग से अलग होने की बात अब निरर्थक है ।

शिवसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन टूटने की फौरी वजह बीएमसी चुनाव में बीजेपी का दो सौ सत्ताइस सीटों में से एक सौ चौदह सीटें मांगना है । शिवसेना साठ सीटों से ज्यादा देना नहीं चाहती है । पिछले दो दशकों से बीएमसी पर शिवसेना-बीजेपी गठबंधन का कब्जा है । पिछले लोकसभा और सूबे के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मजबूत होकर उभरी । शिवसेना को मुंबई और कोंकण तटीय इलाकों में मजबूत माना जाता था लेकिन पिछले चुनावों में स्थिति बदल गई और मुंबई में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया और शिवसेना ने ग्रामीण इलाकों में पैठ बढाई । इन प्रदर्शनों के आधार पर बीजेपी अब खुद को बदली हुई भूमिका में देख रही है । सूबे में सत्ताइस फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे जबकि शिवसेना को महज उन्नीस फीदी । संख्या बल बीजेपी के पक्ष में दिखता है, लिहाजा बीजेपी अब पूरी तौर पर अपने को बड़े भाई की भूमिका में देखना चाहती है और उसी तरह से व्यवहार भी करती है । दोनों दलों में पीढ़ीगत बदलाव भी हो चुके हैं । बीजेपी में अटल-आडवाणी युग खत्म हो गया है और शिवसेना में उद्धव युग की शुरुआत हो चुकी है । मोदी और शाह की राजनीति कई मायनों में अटल-आडवाणी की राजनीति से अलग है । अब बीजेपी उन राज्यों में भी खुद को मजबूत करना चाहती है जहां क्षेत्रीय क्षत्रपों की वजह से हो जूनियर पार्टी के तौर पर रही थी । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इसी सियासी रास्ते पर चलकर सूबे में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी । अपनी मजबूती को कोई भी पार्टी भुनाना चाहती है क्योंकि सियासत में त्याग आदि तो बेमतलब की अवधारणा है । उद्धव ठाकरे राजनीति की जमीनी हकीकत को या तो भांप नहीं पा रहे हैं या फिर भांपने के बाद भी स्वीकार करने को तायर नहीं हैं । चुनाव दर चुनाव ये साबित हो रहा है कि बीजेपी के वोटों में इजाफा हो रहा है । बीएमसी का बजट करीब सैंतीस हजार करोड़ रुपए है और मुंबई का बादशाह बनने की ख्वाहिश अब बीजेपी के मन में भी हिलोरें ले रही है । बीजेपी को लगता है कि अगर उनकी सीटें ज्यादा आ गईं तो झख मारकर शिवसेना को उसके साथ आना ही होगा जैसा कि विधानसभा चुनाव के बाद हुआ था । उधर शिवसेना महाराष्ट्र में जूनियर पार्टनर बनने के बाद मुंबई में अपने गढ़ को बचाए रखना चाहती है । इसी सियासी दांवपेंच की भेंट चढ गया गठबंधन लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि बीएमसी के चुनाव नतीजों के बाद शिवसेना-बीजेपी फिर से एक बार साथ आते हैं या उद्धव का एलान स्थायी है । 

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