बांग्लादेश से लेकर, पेरिस और तुर्की की वारदातों के हमलावरों की
प्रोफाइल चिंता का सबब है । पहले कम पढ़े लिखों को धर्म की आड़ में और पैसों का
लालच देकर आतंकवादी बनाने का खेल चलता था पर अब तो एमबीएम और इंजीनियरिंग के छात्र
आतंकवाद को अपनाने लगे हैं । पूरी दुनिया में इस प्रवृत्ति पर मंथन हो रहा है कि
इस्लाम को मानने पढ़े लिखे युवकों का रैडिकलाइजेशन क्यों और कैसे हो रहा है ।
भारतीय मूल के डैनिश लेखक ताबिश खैर की किताब जिहादी जेन औपन्यासिक शैली में लिखी
गई है जिसमें वैचारिकी के अलावा पढ़े लिखे मुसलमानों की सोच का सामाजिक विश्लेषण
भी है । इस उपन्यास में ताबिश खैर ने ग्रेट ब्रिटेन के यॉर्कशर में रहनेवाली दो
मुस्लिम दोस्तों के कट्टरपंथ की ओर प्रवृत्त होने की वजहों को विय बनाया है । यॉर्कशर
में रहनेवाली दो दोस्त जमीला और अमीना अलग-अलग पारिवारिक पृष्टिभूमि से आती हैं । जमीला
परंपरागत मुस्लिम परिवार से तो भारतीय मूल की उसकी दोस्त अमीना बेहद आधुनिक । दोनों
दोस्तों की पारिवारिक पृष्ठभूमि तो अलग है लेकिन एक बिंदु पर आकर दोनों मिलती हैं
वो है उनका इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर आकर्षण । हम गहराई से ताबिश खैर की इस किताब
पर विचार करें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि बिल्कुल अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से
आनेवाली इन दो मुस्लिम लड़कियों का रैडिकलाइजेशन बिल्कुल अलग अलग वजहों से होता है
जो कि व्यक्तिगत भी हैं ,सामाजिक भी और धार्मिक भी, रूढियों से नाराजगी को लेकर
विद्रोह भी । इन दो वजहों को पढ़ने के बाद एक बात जेहन में आती है कि कुछ पढ़े
लिखे मुसलमान युवकों और युवतियों के कट्टरपंथ की ओर बढ़ने की कई वजहें हो सकती हैं
– धर्म और समाज में स्त्रियों की स्थिति को लेकर जारी मानसिक यातना, महिलाओं को
सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह देखा जाना, इस्लाम की गलत व्याख्या और कुरान और हदीस की आड़
में बरगलाने की कोशिश ।
अपनी पारिवारिक स्थितियों से उबकर
कट्टर इस्लाम की ओर झुकाव रखनेवाली अमीना और जमीला सोशल नेटवर्किंग साइट्स और
यूट्यूब पर कट्टरपंथी भाषणों को सुनने लगती हैं । इसके बाद आधुनिक विचारों वाली
अमीना जीन्स स्कर्ट को छोड़ बुर्के तक पहुंचती है । उसका इस तरह से ब्रेनवॉश किया
गया कि वो घर-बार छोड़कर सीरिया पहुंच जाती है । सीरिया पहुंचने के बाद दोनों
अनाथालय में काम करने लगती हैं । अमीना शादी कर लेती है उधर जमीला का अनाथालय की
हालत को देखकर मोहभंग होने लगता है । उस अनाथालय में छोटी छोटी लड़कियों को
आत्मघाती दस्ता में शामिल होने के लिए तैयार किया जाता है । धर्म के नाम पर ये सब
होता देख जमीला के अंदर कुछ दरकने लगता है । अमीना जब ये देखती है कि एक दस साल के
बच्चे सबाह को यजीदी होने पर गला रेत कर हत्या कर दी जाती है तो उसके मन के कोने
अंतरे में भी मोहभंग की चिंगारी सुलगने लगती है । अमीना तय करती है कि वो कुर्दिश
हमलावरों के खिलाफ आत्मघाती दस्ता में शामिल होगी और जब उसका पति इसके लिए तैयार
होता है तो वो आखिरी मौके पर वो खुद उड़ाती है और उस धमाके में इसका पति हसन और
उसके साथी मारे जाते हैं । ये अमीना का इंतकाम था सबाह की कत्ल का । इस तरह की
किताबों का आना आवश्यक है ताकि फिक्शन से ही सही यथार्थ का चित्रण हो सके । अपनी
इस किताब जिहादी जेन के माध्यम से ताबिश खैर ने विमर्श को एक नया आयाम दिया है
।
1 comment:
विषय रोचक है। पढ़ने की कोशिश करूँगा।
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