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Friday, March 31, 2017

मुजीब की प्रतिमा पर धर्म का साया

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सात अप्रैल से भारत यात्रा के पहले पश्चिम बंगाल में एक अजीबोगरीब मांग उठी है । ये मांग है कोलकाता के बाकर गवर्नमेंट हॉस्टल में लगी बंगबंधु शेख मुजीबुर्हमान की मूर्ति हटाने की । बाकर हॉस्टल में मुजीब की इस मूर्ति को साल दो हजार ग्यारह में बांग्लादेश की सरकार ने लगवाया था । अब उसके छह साल बाद उसको हटाने की मांग, उसकी वजह और उसकी टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं । ऑल बंगाल माइनेरिटी यूथ फेडरेशन की अगुवाई में अनाम अनाम से पंद्रह इस्लामिक संगठनों ने ये मांग उठाई है । उनका तर्क है कि बाकर हॉस्टल में लगी शेख मुजीब की यह मूर्ति इस्लाम के खिलाफ है और इनसे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं । वो तो यहां तक कह रहे हैं कि ये भारतीय मुसलमानों और बांग्लादेशी सरकार के बीच का झगड़ा है । पत्र को ऐसे लिखा गया है गोया ये संगठन भारत के मुसलमानों की रहनुमाई करता हो । ऑल बंगाल माइनेरिटी यूथ फेडरेशन की अगुवाई वाले इस मोर्चे ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री, भारत की विदेश मंत्री और बंगाल की मुख्यमंत्री को खत लिखकर कहा है कि मुजीब की प्रतिमा का बाकर हॉस्टल जैसी इस्लामिक संस्था में होना गलत है क्योंकि वहां मस्जिद भी है । उनका दावा है कि इस प्रतिमा से उस इलाके का धार्मिक वातावरण प्रदूषित होता है और पवित्रता नष्ट होती है । सवाल यही है कि पिछले छह साल से इस मूर्ति का कोई विरोध नहीं हुआ और जब उनकी बेटी और बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री का भारत दौरा करीब आया तो इसका विरोध शुरू हो गया, और धर्म की आड़ ली जाने लगी । धर्म की आड़ में सियासत करना और लोगों की भावनाएं भड़काने के इस खेल को बेनकाब करना बेहद आवश्यक है । मुजीब की प्रतिमा के विरोध के पीछे कई वजहें हैं जिसपर विस्तार से बात होगी पर पहले बताते चलें कि 1940 में शेख मुजीब कोलकाता के इस्लामिया कॉलेज के छात्र थे । इस क़लेज का नाम बदलकर बाद में मौलाना आजाद कॉलेज कर दिया गया था । छात्र जीवन के बाद भी शेख मुजीब का भारत खासकर कोलकाता से गहरा नाता रहा था और उसी रिश्ते को सम्मानित करने के लिए बाकर हॉस्टल में मुजीब की प्रतिमा लगाई गई थी । 
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार ने जब इस्लामिक कट्टरपंथियों पर लगाम लगाना शुरू किया तब से इस्लाम के नाम पर उनका विरोध शुरू हो गया था । सालों से बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया जाता रहा था । इस्लामिक आतंकवादी संगठन हरकत इल जिहाद अल इस्लामी बांग्लादेश और जमातउल मुजाहीदीन बांग्लादेश दोनों देशों में तबाही मचाने की योजना पर काम करती रही है । शेख हसीना ने जब दो हजार नौ में बांग्लादेश की सत्ता संभाली तो उन्होंने इस्लामिक आतंकवादी संगठनों से लेकर कट्टरपंथी संगठनों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया और भारत को भी ये संदेश दे दिया कि उनकी धरती से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । शेख हसीना सरकार की इस कड़ाई के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बंगाल में अपना आधार बनाना शुरू कर दिया। इसका पता तब चला जब दो हजार चौदह में बर्धवान में बम ब्लास्ट हुआ था । उसकी जांच के बाद यह सामने आया कि जमातउल मुजाहीदीन बांग्लादेश ने पश्चिम बंगाल में अपना नेटवर्क काफी फैला लिया है ।
पश्चिम बंगाल में जिस तरह से अल्पसंख्यकों को सरकार की तरफ से छूट आदि जी जा रही है उसने भी इस्लामिक कट्टरपंथियों को पनपने का मौका दिया । ढाका के कैफे में आतंकी हमले का आरोपी इदरीस अली की कोलकाता से गिरफ्तारी से सुरक्षा बलों के कान खड़े हो गए थे । ममता सरकार के सॉफ्ट अप्रोच ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो पा रही है । संभव है कि इससे वोट बैंक की राजनीति में ममता बनर्जी को लाभ हो लेकिन भविष्य में यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है । अभी हाल ही में ये खबर भी आई थी कि बांग्लादेश सरकार ने भारत सरकार को जानकारी दी है कि हुजी और जमातउल मुजाहीदीन बांग्लादेश ने घुसपैठियों को काफी मदद की है लेकिन बंगाल सरकार इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की बात तो दूर इसको मानने को तैयार नहीं ।
अभी कुछ महीने पहले कोलकाता के एक मस्जिद के कथित शाही इमाम बरकती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फतवा जारी किया था । बरकती ने जिस प्रेस कांफ्रेंस में अपमानजनक फतवा जारी किया जिसके पीछे बैनर पर ममता बनर्जी की बड़ी सी तस्वीर लगी थी । लेकिन पुलिस ने बरकती के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की । बरकती और ममता बनर्जी की सियासी नजदीकियां जगजाहिर हैं और अपने इस राजनीतिक संबध को बरकती सार्वजनिक रूप से जाहिर भी कर चुके हैं । पश्चिम बंगाल में करीब अट्ठाइस-तीस फीसदी मुसलमानों के वोट हैं । इन्हीं वोटों को चक्कर में पश्चिम बंगाल में बरकती जैसी शख्सियतों को बढ़ावा दिया जाता है । इन्हीं मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में वामपंथी सरकारों से लेकर ममत बनर्जी सरकार तक तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से निर्वासित कर देती है । तुष्टीकरण की इस नीति के खिलाफ भी कभी सहिष्णु बुद्धिजीवियों ने कुछ बोला, लिखा हो ज्ञात नहीं है । अब मुजीब की प्रतिमा हटाने की मांग के खिलाफ भी मुसलमानों की प्रोग्रेसिव जमात की तरफ से विरोध नहीं उठना चिंताजनक है । उससे भी ज्यादा चिंताजनक है हमारे देश के बौद्धिकों की खामोशी । इसका असर हमारे समाज पर तो पड़ ही रहा है अब इसने अंतराष्ट्रीय संबंधों पर भी इसर डालने की कोशिश शुरू कर दी है । अगर शेख हसीना के दौरे के वक्त मुजीब की प्रतिमा को लेकर कोई अप्रिय घटना घटती है तो इससे बहुत गलत संदेश जाएगा और संभव है कि दोनों देशों के संबंधों पर उसका असर पड़े । इस आशंका के मद्देनजर केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को इन अनाम धार्मिक संगठनों से सख्ती निपटने की सलाह दी है। बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल दोनों स्थानों पर जिस तरह से इस्लाम के नाम पर कट्टरता को बढ़ाने का कुत्सित खेल खेला जा रहा है उससे सख्ती से निबटने की जरूरत है । शेख हसीना ने तो तमाम खतरे उठाते हुए कई कड़े कदम उठाए हैं अब आवश्यकता इस बात की है कि ममता बनर्जी भी वोटबैंक की राजनीति से उपर उठकर राष्ट्रहित में कदम उठाएं ।   


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