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Tuesday, March 21, 2017

महिलाएं और चर्च आमने-सामने

पिछले दिनों केरल से खबर आई थी कि चर्च के एक वरिष्ठ पादरी को एक नाबालिग से रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया था । पीड़ित नाबालिग के एक बच्ची को जन्म देने के बाद ये मामला खुला था । चर्च में पादरी के यौन अपराध की यह पहली घटना नहीं थी, चर्च और उसके पादरी से जुड़ी इस तरह की घटनाएं नियमित अंतराल पर सुर्खियां बनती रही हैं । इन घटनाओं को चर्च के कर्ताधर्ता, कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा बताकर दरकिनार करने की कोशिश करते रहे हैं । अब केरल में ईसाइयों के समूहों ने चर्च के पादरियों से जुड़ी इन घटनाओं का प्रतिवाद शुरू कर दिया है । हाल ही में केरल के कोच्चि में आर्कबिशप के घर के बाहर केरल कैथोलिक रिफॉर्म मूवमेंट से जुड़े लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया । उनकी मांग है कि महिलाओं और लड़कियों का कन्फेशन पादरियों की बजाए नन्स के सामने करवाया जाए । ईसाई संगठन के लोगों का कहना है कि कन्फेशन के वक्त पादरी महिलाओं और लड़कियों से ना केवल असुविधाजनक सवाल पूछते हैं बल्कि उनकी हालात का फायदा भी उठाकर धर्म की आड़ में यौन शौषण करते हैं । केरल में आर्क बिशप के घऱ के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों का दावा है कि बाइबिल में इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं है कि कन्फेशन या सैक्रामेंट सिर्फ पादरी ही करवा सकते हैं । इस संगठन के मुताबिक अगर महिलाओं को नन्स के सामने कन्फेशन की इजाजत दे दी जाती है तो पादरियों से जुड़े यौन अपराध की घटनाएं कम हो सकती हैं । केरल में ईसाई संगठनों के इस प्रदर्शन का चर्च प्रशासन पर कोई खास असर दिख नहीं रहा है । केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल ने नन के सामने महिलाओं या लड़कियों की कन्फेशन की मांग को ठुकरा दिया है । उनका कहना है कि छिटपुट घटनाओं के आधार पर बाइबिल के आधारभूत सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जा सकता है । उनका कहना है कि महिलाओं को पादरी या प्रीस्ट का दर्जा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह धर्म सम्मत नहीं है ।
चर्च में पादरियों द्वारा कन्फेशन के दौरन यौन शोषन की घटनाओं की पुष्टि सात- आठ साल पहले पहले कैथोलिक चर्च में छब्बीस साल तक नन रही सिस्टर जेसमी की आत्मकथा- आमीन, एन ऑटोबॉयोग्राफी ऑफ ए नन, से भी हुई थी । सिस्टर जेसमी ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि जब वो कन्फेशन के लिए गई थी तो उसको वहां का वातावरण बेहद रहस्यमयी लगा था । उसकी साथी कुलसुम और मारिया ने उसको बताया था कि जो भी लड़की कन्फेशन के लिए प्रीस्ट के कमरे में जाती है, फादर उसको किस करता है । जब जेसमी कन्फेशन रूम में जाती है तो वहां मौजूद फादर उससे किस करने की इजाजत मांगता है । वो बाहर निकल आती है।  दूसरी बार भी उसको दबाव डालकर उसी प्रीस्ट के पास कन्फेशन के लिए भेजा जाता है जहां वो अपना विरोध जताते हुए कहती है कि किस को लेकर कांग्रेगेशन की लड़कियों में रोष है । फादर का तर्क है – मैंने हर किसी से किस करने की इजाजत ली है और जिसने मना किया है उसको मैंने किस नहीं किया। और ये सब तो बाइबिल के अनुरूप है । लेकिन जेसमी के सवाल जवाब से फादर खफा हो जाते हैं और कन्फेशन के सत्र को खत्म कर देते हैं । बाद में जेसमी को अपने कमरे में बुलाकर बाइबिल का हवाला देते हैं । सेन्ट पॉल ने कहा है कि एक दूसरे का अभिवादन पवित्र चुंबन से करें । पीटर कहते हैं – एक दूसरे को प्यार के चुंबन से विश करो आदि आदि । जब सिस्टर जेसमी की आत्मकथा छपी थी तब भी इस बात को लेकर काफी बखेड़ा हुआ था और देश विदेश मे चर्चों से इस किताब पर आपत्ति आई थी, पाबंदी लगाने की मांग भी की गई थी ।
ऐसा नहीं है कि पादरियों के यौन अपराध की घटनाएं और महिलाओं के अधिकार की मांग पहली बार की जा रही है । पहले भी अंतराष्टीय स्तर पर इस तरह की मांग उठती रही है । चर्च में महिलाओं को पुरुषों के बराबर भूमिका पर कई बार विमर्श हुआ है, पूरे यूरोप में इस पर लंबे समय तक बहस चली है, लेकिन अंतत: बाइबिल का हवाला देकर महिलाओं को प्रीस्ट बनने से रोक दिया जाता रहा है । अपने सुधारवादी रवैये के लिए मशहूर पोप फ्रांसिस ने भी पिछले साल साफ तौर पर कह दिया था कि कोई भी महिला कभी भी रोमन कैथोलिक चर्च में प्रीस्ट नहीं हो सकती है । उन्होंने कहा था कि सेंट पोप जॉन पॉल द्वितीय के शब्द इस मसले पर अंतिम है । उन्होंने उन्नीस सौ चौरानबे के उस दस्तावेज का भी हवाला दिया जिसके मुताबिक महिलाएं कभी भी प्रीस्ट नहीं बन सकती हैं । पोप फ्रांसिस को महिलाओं के हितों के पैरोकार के तौर पर जाना जाता था लेकिन महिलाओं को प्रीस्ट बनाने के मसले पर वो पोप जॉन पॉल द्वितीय की तरह ही परंपरावादी साबित हुए । दरअसल धर्म और धर्मग्रंथों की व्याख्या की आड़ में तकरीबन सभी धर्मों में महिलाओं को उनके हक से दूर रखा जाता है । समय की मांग को देखते हुए सभी धर्म के कर्ताधर्ताओं को बराबरी के मूलभूत सिद्धांत को तवज्जो देते हुए फैसले करने चाहिए । किसी भी धर्म में जबतक महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता है और पितृसत्ता कायम रहती है तबतक उस धर्म को लेकर आधी आबादी के मन में संशय बरकरार रहेगा । यह संशय किसी भी धर्म के लिए उचित नहीं है ।      

2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2609 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Tarun / तरुण / தருண் said...

यौन अपराध और बालिका प्रताड़ना की घटनाये इतनी तेजी से बढ़ने का कारण हर हाथ तक नेट की पहुँच भी है , परवरिश और शिक्षा व्यवस्था का बाजारीकरण करने से समस्या विकराल बन चुकी है। ... हर समस्या से निबटने के लिए एक हाथ में तलवार और दूसरे में ढाल का प्रयोग कर लड़ाई जीतनी होगी ! जिन कन्याओं पर अत्याचार हो उन्हें आवश्यक रूप से विशेष पुलिस बल में भर्ती कर जीवन सुधार के साथ समाज सुधार की शक्ति भी सौपनी होगी ! हम छोटे मोटे लेखक है आप समर्थ है कृपया उचित प्लेटफॉर्म तक इस विचार को आगे ले जाए ! लेख पढ़ा आपने सही लिखा है इस समस्या का धर्म से कोई लेना देना नहीं है !
साधुवाद स्वीकार करे !