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Monday, March 27, 2017

सेहत पर सार्थक पहल

सरकार ने नई स्वास्थ्य नीति की घोषणा संसद में कर दी है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह एक बड़ा ऐतिहासिक कदम है. लेकिन मीडिया में उसे वह तवज्जो नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी. नरेन्द्र मोदी की अगुआई में देश ने आजादी के बाद सही मायनों में दो बुनियादी चीजों पर खास ध्यान दिया है. शिक्षा और स्वास्थ्य! नई स्वास्थ्य नीति न केवल जनोन्मुखी है, बल्कि इसमें दो बातें बेहद खास हैं. एक तो सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्यों केंद्रों में साधारण रोगों के लिए जनसाधारण को कोई खर्च नहीं करना होगा. उन्हें डाक्टरी सेवा और दवा मुफ्त मिलेगी. 
नई स्वास्थ्य नीति मकसद सभी नागरिकों को सुनिश्चित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना बताया गया है. नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का प्रारूप पिछले दो साल से सरकार के पास लंबित था. इसको लेकर कुछ हलकों में आलोचना भी हुई थी. लेकिन सरकार इस पर काम कर रही थी, और पूरी तरह से आस्वस्त होने के बाद इसे हरी झंडी दी गई है. नई नीति में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का दायरा बढ़ाने पर जोर है. मसलन, अभी तक इन केंद्रों में रोग प्रतिरक्षण, प्रसव पूर्व और कुछ अन्य रोगों की जांच ही होती थी. लेकिन नई नीति के तहत इसमें गैर संक्रामक रोगों की जांच भी शामिल होगी. सरकार की नई स्वास्थ्य नीति यह दावा करती है कि इससे देश में नागरिकों की औसत उम्र 67.2 वर्ष से बढ़कर 70 वर्ष हो जाएगी. यही नहीं उत्तम स्वास्थ्य पाकर उनकी कार्य-क्षमता दोगुनी हो सकती है. नवजात शिशुओं की मृत्यु दर घटेगी. सरकार का कहना है कि इस काम में देश के कुल मद का तकरीबन 2.5 पैसा लगेगा. इसे अगर कुल खर्च में जोड़ें तो यह लगभग तीन लाख करोड़ रुपए बैठता है. यह खर्च अभी सरकारी इलाज पर हो रहे खर्च से डेढ़ से दो गुना है. पर इसका फायदा देश के असली जरूरतमंदों ग्रामीणों, गरीबों और पिछड़ों को मिलेगा.
ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार के ने उन लोगों को ध्यान में रखकर अपनी योजना बनाई है, जो अपने खून-पसीने से, मजदूरी से खेती से, उत्पाद से देश का निर्माण करते हैं, बुनियाद गढ़ते हैं, संपत्ति पैदा करते हैं, लेकिन उनके पास अपना इलाज करवाने तक के लिए पैसे नहीं होते. दुर्भाग्य से आजादी के बाद से ऐसे लोगों के समुचित स्वास्थ्य के लिए कोई खास सरकारी नीति नहीं थी, और धीरे-धीरे ही सही बढ़ते- बढ़ते ऐसे लोगों की संख्या लगभग 100 करोड़ से ऊपर हो गई.
नई स्वास्थ्य नीति की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें एलोपेथी के साथ देश की पारंपरिक चिकित्सा-प्रणालियों पर काफी जोर दिया गया है. इन चिकित्सा-पद्धतियों में नए-नए वैज्ञानिक अनुसंधानों को प्रोत्साहित किए जाने की बात भी कही गई है. आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपेथी और प्राकृतिक चिकित्सा पर सरकार विशेष ध्यान दे, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा होगा और इलाज का खर्च भी घटेगा.
यदि देश में डाक्टरों की कमी पूरी करनी हो तो मेडिकल की पढ़ाई स्वभाषाओं में तुरंत शुरु की जानी चाहिए. आज देश में एक भी मेडिकल कालेज ऐसा नहीं है, जो हिंदी में पढ़ाता हो. सारी मेडिकल की पढ़ाई और इलाज वगैरह अंग्रेजी माध्यम से होते हैं. यही ठगी और लूटपाट को बढ़ावा देती है. उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस भूपेन्द्र सिंह ने दवाओं के दाम का निर्धारण करने वाले महकमे की कमान संभालने के बाद मोदी जी की नीतियों पर चलते हुए दवा कंपनियों की मुश्कें कसीं और कई जीवनोपयोगी दवाओं के मूल्य में हजार फीसदी तक की कमी करा दी. ह्रदय रोगियों के लिए स्टेंट की कीमतों में ऐतिहासिक कमी की गई है जो किएक बड़ी राहत है । अस्पतालों की मनमानी कीमत वसूलने पर भी रोक लगाने की पहल हुई है ।
स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्ढा की यह पहल प्रशंसनीय है कि उन्होंने कुछ बहुत मंहगी दवाओं के दाम बांध दिए हैं और स्टेंटभी सस्ते करवा दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक काम और करना चाहिए. जिस तरह स्वच्छ भारत अभियान और आदर्श गांव लेकर उन्होंने जनप्रतिनिधियों को बांधा उसी तरह, उन्हें चाहिए कि जनता के सभी चुने हुए प्रतिनिधियों, सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों के लिए यह अनिवार्य करवा दें कि उनका इलाज सरकारी अस्पतालों में ही होगा. तय है कि नई सरकारी नीति के बाद वीआईपी लोगों की पहुंच से साल भर के भीतर ही ये अस्पताल निजी अस्पतालों से बेहतर सेवाएं देने लगेंगे.
नई नीति की खास बात यह भी है कि इसमें जिला अस्पतालों के पुनरुद्धार पर भी विशेष जोर दिया गया है. यह एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है. यह जाहिर तथ्य है कि सरकारी अस्पतालों ने स्वास्थ्य देखरेख के क्षेत्र में अपना महत्त्व खो दिया है. अगर व्यक्ति जरा भी सक्षम है तो इलाज और सेहत निजी अस्पताल में करवाता है. इनसे एक तो स्वास्थ्य सेवाएं गरीबों से दूर हुई हैं, दूसरी तरफ उपचार संबंधी कई बुराईयां भी उभरी हैं. स्वास्थ्य सेवा की जगह व्यवसाय बन गया, तो प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की गैर-जरूरी जांच तथा अनावश्यक दवाएं देने की शिकायतें बढ़ती गईं.
ऐसे में अगर नई स्वास्थ्य नीति के बाद सरकारी इलाज बेहतर होगा तो राष्ट्रहित में इससे बेहतर बात क्या होगीयाद रहे कि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है. ऐसे में अब यह राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वे इस नई नीति को कितनी गंभीरता से लेती हैं. केंद्र के सामने बड़ी चुनौति राज्यों से मिलकर स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा जिला अस्पतालों को स्वास्थ्य देखभाल में केंद्रीय स्थान देने की ठोस रणनीति बनाने की होगी. अच्छा है कि यूपी और उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमों में लूट मचाने वाले हार चुके हैं, और जनसेवक सरकार केंद्र की नीतियों पर अमल करेंगी.


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