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Tuesday, March 7, 2017

विजय से खुलते नए क्षितिज

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब चंद दिन ही शेष रह गए हैं । राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव के नतीजे को लेकर तरह तरह का आंकलन कर रहे हैं । बौद्धिक जुगाली के लिए हर तरह के जातिगत और अन्य आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है । भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का लंबे समय से विरोध करनेवाले व्यक्ति और संस्थाएं भी इस बात पर एकमत दिखती हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है । इन राजनीतिक ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों की सचाई का पता ग्यारह मार्च की दोपहर तक चल जाएगा । चुनाव में हार जीत होती रहती है और ये लोकतंत्र की खूबसूरती और ताकत दोनों है । उत्तर प्रदेश के चुनावी शोरगुल के बीच एक बेहद महत्वपूर्ण घटना को राजनीतिक विश्लेषकों ने अहमियत नहीं दी । देश के मतदाताओ के रुझान में या कह सकते हैं कि उनकी पसंद में एक बड़ा शिफ्ट देखने को मिल रहा है जिसको प्रमुखता से रेखांकित किया जाना चाहिए । देश के कई राज्यों में पिछले कुछ सालों से हो रहे स्थानीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने धीरे धीरे अपनी उपस्थिति काफी मजबूत की है । अगर हम देखें तो उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव से लेकर महाराष्ट्र और ओडिशा से लेकर केरल तक के स्थानीय निकाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महत्वपूर्ण सफलता मिली है । दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव में पार्टी की शानदार सफलता के बाद उसने स्थानीय चुनावों में जिस तरह से पैठ बनाई है उसपर विचार करना आवश्यक है ।
अभी हाल ही में बृह्नमुंबई महानगर पालिका के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार सफलता हासिल की और पिछले चुनाव में बत्तीस सीटों के मुकाबले बयासी सीटें जीतकर इस बात को साबित किया स्थानीय स्तर पर भी उनके वोटर मजबूती से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं । यह तब हुआ जब भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन नहीं हो पाया और बीजेपी ने अकेले दम पर जीत का परचम लहराया । यह स्थिति सिर्फ वृह्नमुबंई महानगर पालिका में ही नहीं बनी बल्कि अगर पूरे महाराष्ट्र के स्थनीय निकाय चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि मुबंई से बाहर तो स्थिति और भी अच्छी रही और नौ शहरों में से आठ पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सफलता के झंडे गाड़े । महाराष्ट्र के दस शहरों के स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी की सीटें, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी तीनों पार्टियों की सीटों की संयुक्त संख्या से अधिक है । इसके अलावा बीजेपी ने महाराष्ट्र के जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनावों में भी अपनी स्थिति काफी मजबूत की है । इसी तरह से अगकर ओडिशा के स्थानीयनिकाय चुनावों पर नजर डालें तो बीजेपी ने यहां सफलता तालिका में बेहतपीन प्रदर्शन करते हुए आठ गुना ज्यादा सीटें जीती हैं । पार्टी ने कुल आठ सौ इक्यावन जिला परिषद सीटों में से दो सौ चौरानवे पर जीत हासिल कर अपनी स्थिति काफी मजबूत की है । यह सही है कि चार सौ सड़सठ सीटें जीतकर बीजू जनता दल अब भी शीर्ष पर बनी हुई है लेकिन बीजेपी ने पिछड़े इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत कर बीजू जनता दल के लिए दो हजार उन्नीस में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले खतरे की घंटी बजा दी है ।
पहले यह कहा जाता था कि जहां जहां कांग्रेस कमजोर हो रही है वहीं वहीं बीजेपी को फायदा हो रहा है । जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं वहां बीजेपी अपनी ल्थिति बेहतर नहीं कर पा रही हैं । इस संबंध में बिहार और दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक का उदाहरण दिया जाता रहा है । लेकिन स्थनीय निकाय के चुनाव नतीजों ने इस राजनीतिक अवधारणा को निगेट किया है । महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां कांग्रेस कमजोर है लेकिन शिवसेना और एमसीपी जैसे क्षेत्रीय दल हैं वहां भी बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत की है । ओडिशा के स्थानीय निकाय चुनाव में तो बीजेपी ने पिछले डेढ दशक से सत्ता में रही बेहद मजबूत क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल को ही सीधी चुनौती देते हुए अपनी स्थिति मजबूत की है । हलांकि केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में भी जिस तरह से बीजेपी को सफलता मिली है वह भी रेखांकित की जानी चाहिए । केरल में बीजेपी ने जिला परिषदसे लेकर पंचायत चुनाव में अपनी स्थिति काफी बेहतर की थी और पलक्कड नगरपालिका में चेयरमैन के पद पर कब्जा किया था । यह अलहदा है कि पार्टी अपनी इस सफलता को विधानसभा चुनाव में आगे नहीं बढ़ा पाई । लेकिन केरल जैसे पारंपरिक रुप से वामपंथ और कांग्रेस के बीच झूल रहे राज्य में बीजेपी का मजबूत होना पार्टी की अकिल भारतीय स्वरूप की स्वीकार्यता का उदाहरण मात्र है । इन चुनावी नतीजों ने इस बात को भी स्थापित किया है सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी खुद को उन इलाकों में भी मजबूत कर रही है जहां पहले उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था । इस बात को श्रेय बीजेपी की उस रणनीति को दिया जा सकता है जिसमें पार्टी ने स्थानीय नेताओं को मजबूकी देनी शुरू की । महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में जिस तरह की सफलता मिली है, बहुत हद तक उलसका श्रेय देवेन्द्र फड़णवीस को है जिनको पार्टी के आला नेतृत्व ने अपनी नीतियों से मजबूती प्रदान की । इसी तरह से पार्टी ने ओडिशा में धर्मेन्द्र प्रधान को आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है । बीजेपी के मजबूत क्षेत्रीय नेता शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे के अलावा देवेन्द्र फड़णवीस को जिलस तरह से मजबूत किया जा रहा है उसने पार्टी को अपना दायरा बढ़ाने में काफी मदद की है । कांग्रेस से यह चूक इंदिरा गांधी के पार्टी के केंद्र में आने के बाद से ही हुई और पार्टी के मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को एक एक करके हाशिए पर डाला गया जो अब तक जारी है । सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दौर में भी क्षेत्रीय नेतृत्व को उभरने का मौता नहीं दिया गया और बगैर जनाधार वाले नेताओं को पार्टी में अहमियत मिली । नतीजा सबके सामने है । इससे उलट नरेन्द्र मोदी ने अपनी मजबूत छवि और भ्रश्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले योद्धा के रूप में खुद को पेश कर जनता को एक संदेश दिया कि वो एक ऐसे नेता हैं जो बेहतर गवर्नेंस के लिए प्रतिबद्ध हैं । इन सबके मेल से ही किसी दल को सफलता मिलती है । 

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