भारत माता की जय के नारों के बीच लखनऊ के लोकभवन के सभागार में योगी आदित्यनाथ
के नाम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर जब विधायकों ने सर्वसम्मति से चुना
तो वहां से एक साथ कई संदेश निकले । योगी आदित्यनाथ प्रखर और कट्टर हिंदूवादी छवि के
नेता है । योगी पांच बार के सांसद हैं और पूर्वांचल में उनकी छवि बेहद दबंग नेता की
है । कहा जाता है कि योगी अपनी दबंगई की वजह से प्रशासन को भी अपने इलाके में सही से
काम करने के लिए मजबूर करते रहे हैं । इसके अलावा योगी गोरखपुर से हिंदू वाहिनी नाम
की एक संस्था भी चलाते हैं । उनको देश के सबसे
बड़े सूबे की कमान सौंपकर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश के हिद्ओं
को विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत का रिटर्न गिफ्ट दे दिया है । जिस तरह से जातियों
के बंधन को तोड़कर उत्तर प्रदेश की हिंदू आबादी ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भरोसा
जताया था उस भरोसे को योगी का राजतिलक और गाढ़ा करेगा । योगी ने चुनाव पूर्व अपने भाषणों
में साफ साफ कहा था कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में संतुलन कायम कर दिया गया है और यही
संतुलन पूरे प्रदेश में लाना है । उनका इशारा बहुत साफ था । कैराना से पलायन और लव
जेहाद जैसे मुद्दों को योगी प्रमुखता से उठाते रहे हैं ।
दरअसल अगर योगी के राजतिलक पर विचार करें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वहां अब
भारतीय जनता पार्टी हिदुत्व और विकास की समन्यवादी राजीनीति के रास्ते पर चलेगी । हिदुत्व
और विकास की इस समन्वयवादी राजनीति का मानचित्र दो हजार चौदह में लोकसभा चुनाव के वक्त
तय किया गया था जब नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश को छोड़कर बनारस को अपना लोकसभा क्षेत्र
चुना था । बनारस का सनातन परंपरा में अपना एक अलग स्थान है और नरेद्र मोदी की उम्मीदवारी
मात्र ने उस वक्त वहां बीजेपी के लिए कम से कम तीन दर्जन लोकसभा सीट पर जीत तय कर दी
थी । उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी मुसलमान
को अपना प्रत्याशी नहींबनाकर अपने कोर वोटरों को एक संदेश भी दिया । इस बात की लाख
आलोचना हुई लेकिन उन आलोचनाओं पर ध्यान ही नहीं दिया गया, बल्कि उस पार्टी के नेताओं
से जब इस बारे में सवाल पूछा जाता था तब वो कहते थे कि उनकी पार्टी सबका साथ सबका विकास
में यकीन रखती है और तुष्टीकरण को किसी भी कीमत पर तरजीह नहीं देगी । विधायक दल के
नेता के चुनाव में केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद केंद्रीय मंत्री वैकेंया नायडू
ने पत्रकारों से बात करते हुए साफ कहा कि विकास के अलावा जाति और मजहब की राजनीति के
पैरोकारों को जनता ने जिस तरह से सबक सिखाया है उसका बीजेपी ध्यान रखेगी । यह सब करके
पार्टी बहुत सधे हुए तरीके से अपने हिंदू वोटरों को संदेश दे रही थी और चुनावी नतीजों
ने यह साबित किया कि बीजेपी के लक्षित वोटरों ने इन संदेशों को ग्रहण भी किया । अब
योगी के हाथ में यूपी की कमान देकर बीजेपी नेतृत्व ने वोटों के इस समूह को और मजबूत
करने का प्रयास किया है । इस प्रयास को दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव के पहले अन्य
राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से भी जोड़कर देखा जा सकता है।
योगी को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपकर एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी और अमित
शाह ने राजनीतिक विश्लेषकों के आंकलन को गलत साबित कर दिया है । जो लोग पारंपरिक तरीके
से राजनीति का विश्लेषण करते हैं उनको यह बात गले ही नहीं उतर रही थी कि उत्तराखंड
में भी राजपूत जाति का मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश में राजपूत सीएम । परंपरागत राजनीति
विश्लेषक तो यहां तक कह रहे थे कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से पीएम और सीएम दोनों नहीं
हो सकते । पत्रकारों की टोली लगातार अलग अलग नामों पर कयास लगा रही थी । न्यूज चैनलों
पर तो हर पांच मिनट में यूपी का नया सीएम घोषित हो रहा था । शनिवार सुबह तो मनोज सिन्हा
का नाम तय माना जा रहा था । पर योगी की ताजपोशी ने इन सब अटकलों को गलत साबित कर दिया
। दरअसल अगर हम देखें तो नरेन्द्र मोदी ने बिल्कुल नई तरह की राजनीति शुरू की है जिसमें
जातिगत समीकरणों का ध्यान तो रखा जाता है लेकिन उसको परोक्ष तरीके से अपनी राजनीति
का हिस्सा बनाते हैं । जैसे योगी के साथ केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री
बनाकर सोशल इंजीनियरिंग को भी साधने की कोशिश की गई है । केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी
जाति से आते हैं और दिनेश शर्मा ब्राह्मण हैं । अब इस समीकरण पर नजर डालें तो साफ है
कि गैर यादव पिछड़ा, ब्राह्मणों को संदेश दे दिया गया । इसके बाद मंत्रियों के चयन
में भी अन्य जातियों और क्षेत्रीय संतुलन का ख्याल रखा जाना तय है । योगी को प्रदेश
का मुख्यमंत्री बनाए जाने पर कुष लोगों को लग रहा है कि विकास से ज्यादा विवाद होगा
। योगी के अबतक के बयानों और उनकी छवि के मद्देनजर यह आशंका व्यक्त की जा रही है लेकिन
उत्तर प्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसपर पीएमओ की सीधीनजर रहेगी । योगी के नाम के ऐलान
के दो दिन पहले ही पीएमओ के आला अफसरों की टीम लखनऊ पहुंचकर सुशासन का खाका खींचने
के काम में जुटी है । ऐसे में विवाद की आशंका से एकदम इंकार तो नहीं किया जा सकता है
लेकिन मुख्यमंत्री बनने और उसके पहले के नेताओं के आचार व्यवहार में फर्क इस देश ने
पहले भी देखा है ।
2 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’राजनीति का ये पक्ष गायब क्यों : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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