योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभाले अभी एक पखवाड़ा भी नहीं
बीता है और उनके कामकाज के तरीकों पर टीका टिप्पणी शुरू हो गई है । यह बात सही है कि
सत्ता हनक और इकबाल से चलती है और योगी आदित्यनाथ की हनक बगैर कुछ कहे सत्ता के गलियारों
में दिखाई दे रही है । प्रशासनिक अधिकारी भी इसको महसूस कर रहे होंगे, तभी तो औपचारिक
आदेश के पहले ही गैरकानूनी कार्यों पर पुलिस की गाज गिरनी शुरू हो गई है । अवैध कत्लगाहों
पर ताले लगे शुरू हो गए । महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस सजग नजर आने लगी । सबसे
बड़ी बात है कि पुलिस एक्शन में नजर आ रही है, चाहे वो अवैध कत्लखानों को बंद करवाने
की मुहिम हो फिर एंटी रोमियो स्कवॉड । उत्तर प्रदेश का सिर्फ प्रशासनिक अमला ही सक्रिय
नजर नहीं आ रहा है बल्कि योगी के आलोचक भी सक्रिय नजर आने लगे हैं । सबसे पहले योगी
आदित्यनाथ के पहनावे को लेकर टीका टिप्पणी शुरू हुई फिर मुख्यमंत्री आवास की शुद्धिकरण
को लेकर योगी आदित्यनाथ को घेरने की कोशिश की गई । आलोचना करनेवाले यह भूल गए कि भारतीय
लोकाचार में गृह प्रवेश की बहुत पुरानी परंपरा है और उसके पहले पूजा पाठ का भी प्रावधान
रहा है । गृह प्रवेश के पहले घर के बाहर स्वास्तिक का चिन्ह भी बनाया जाता है । अब
इन परंपराओं से अनजान या जानबूझकर इसको नजरअंदाज कर योगी आदित्यनाथ पर जिस तरह से हमले
किए गए वो हमलावरों की मानसिकता को ही उजागर कर गया । इस पूरे दौर में सबसे रेखांकित
करनेवाली बात रही योगी का मुखर मौन। बगैर किसी बयानबाजी के वो शासन-प्रशासन की चूलें
कसने में लगे हैं और सरकार की तरफ से बोलने के लिए अपने दो मंत्रियों सिद्धार्थनाथ
सिंह और श्रीकांत शर्मा को अधिकृत कर मंत्रियों को भी अनुशासन के दायरे में रहने की
परोक्ष नसीहत दे दी । दरअसल योगी आदित्यनाथ की आलोचना करनेवाले उनके बहाने से प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को भी घेरने की कोशिश करते हैं ।
एक पुरानी कहावत है कि इतिहास खुद को दोहराता है । ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब
मई दो हजार चौदह में नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे तब भी इसी तरह की बातें
देखने सुनने को मिल रही थीं । उनसे भी इसी तरह की अपेक्षा की जा रही थी कि वो जादू
की छड़ी घुमाएंगें और चमत्कार हो जाएगा । अब उत्तर प्रदेश के सीएम योगी से भी इसी तरह
की अपेक्षाएं की जा रही है । दरअसल हमारे देश के पारंपरिक राजनीतिक विश्लेषकों ने आलोचना
या किसी भी नेता को कसौटी पर कसने का नया औजार विकसित नहीं किया । पुराने ढर्रे पर
चलकर ही वो खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश करते हैं जिसमें बहुधा उनको सफलता
हासिल नहीं होती है ।
अगर पिछले एक दशक की ही बात करें तो उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव की
सरकार रही । मायावती के शासनकाल में भ्रष्टाचार ने सांस्थानिक रूप ले लिया । हजारों
करोड़ के घोटाले और घपले हुए, एनआरएचएम तो मायावती के राज में हुए घोटाले का सबसे बड़ा
स्मारक है । मायावती के कई मंत्रियों को इस घोटाले में जेल जाना पड़ा, भ्रश्टाचार में
शामिल नहीं होने पर सीएमओ तक का कत्ल हुआ । इसी तरह से अखिलेश यादव के शासनकाल में
कानून व्यवस्था इतनी बदतर हो गई थी कि पुलिस भी किसी तरह अपनी इज्जत बचाकर चल रही थी
। तुष्टीकरण की नीति के चलते पुलिस कई इलाकों में बेबस थी । अखिलेश यादव के शासनकाल
में ही इंसपेक्टर से लेकर डीएसपी तक की हत्या की गई । पुलिस की बेबसी का आलम यह है
कि बुधवार को शामली में पशुकटान की जांच करने पहुंची पुलिस की पार्टी को दौड़ा लिया
गया और फायरिंग आदि भी की गई जिसमें कई पुलिस वाले बुरी तरह से जख्मी गए । योगी आदित्यनाथ
के सामने सबसे पहले पुलिस को मिली कानून की ताकत बहाल करनी होगी । योगी के आलोचकों
की अपेक्षा है कि वो एक ही दिन में सबकुछ ठीक करें । पिछले पांच साल में लगभग सड़ चुकी
कानून व्यवस्था की स्थिति को ठीक करने में कुछ वक्त तो योगी आदित्यनाथ को देना होगा,
देना भी चाहिए ।
चुनाव के पहले बीजेपी के संकल्प पत्र में किए गए वादों को लेकर भी योगी आदित्यनाथ
से अपेक्षा की जा रही है कि वो उन संकल्पों को फौरन पूरा कर दें । किसानों की ऋण माफी
को लेकर भी उनको घेरने की कोशिश की जा रही है । किसानों की ऋणमाफी का वादा खुद प्रधानमंत्री
ने किया था इसलिए इसको पूरा तो होना ही है लेकिन इसकी जो प्रक्रिया है वो तो होगी ।
इसके अलावा गन्ना किसानों के भुगतान की प्रक्रिया में भी वक्त लगेगा । भ्रष्टाचार के
खिलाफ जंग के लिए अफसरों की पहचान करनी पड़ेगी और उनमें से कईयों को केंद्र की प्रतिनियुक्ति
से वापस सूबे में लाना होगा, इसी एक प्रक्रिया है जिसमें वक्त लगता है । जिस तरह से
योगी के आलोचक जल्द फैसलों को लेकर अधीर हो रहे हैं उनको सब्र करना चाहिए । टीवी पर
बहस में बोलना, सोशल मीडिया पर लिखना आसाना है और वक्त कम लगता है लेकिन सरकारी प्रक्रिया को कानून सम्मत
ढंग से पूरा करने में वक्त लगता है और करीब पखवाड़े पहले सूबे की कमान संभालनेवाले
मुख्यमंत्री को इतना वक्त तो देना ही चाहिए । इस मसले पर समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल
यादव ने सही कहा है कि योगी आदित्यनाथ को अपने वादों को पूरा करने और उसको जनता तक
पहुंचाने के लिए कम से कम छह महीने का वक्त दिया जाना चाहिए । अभी योगी आदित्यनाथ की
प्रशासनिक क्षमता को भी देश ने देखा नहीं हैस बगैर उसको परखे, बगैर उसको वक्त दिए भी
आलोचना आधारहीन है ।
1 comment:
सच्चे अर्थों में आंकलन होना ही तब चाहिए जब उनके काम को कुछ समय परखा जाए ।
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