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Tuesday, April 18, 2017

तेते पांव पसारिए, जेते लांबी सौर


अकबर-बीरबल से संबंधित एक मशहूर किस्सा है। अकबर हमेशा से बीरबल की तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा से प्रभावित रहते थे। लगभग हर मसले पर बीरबल से राय मशविरा करते थे। दोनों एक दूसरे पर व्यंग्य आदि भी करते थे, कहने का अर्थ यह कि दोनों में मित्रवत संबंध थे । अकबर-बीरबल के बीच के इस तरह के संबंध को देखकर अकबर के नवरत्नों समेत अन्य दरबारियों को ईर्ष्या होती थी । उन्हें जब भी मौका मिलता वो बादशाह अकबर से बीरबल की शिकायत करते कि वो जरूरत से ज्यादा बीरबल को तरजीह देते हैं । जब बीरबल के खिलाफ अन्य दरबारियों की शिकायत बढ़ने लगी तो अकबर आजिज आने लगे और एक दिन शिकायत करनेवालों को कह दिया कि आप लोग भी बीरबल जैसे गुणी बनिए और चुनौती दी कि अगर उनमें से कोई बीरबल से ज्यादा बुद्धिमान है तो उसको बीरबल से अधिक तवज्जो दी जाएगी। अकबर ने ये कह तो दिया लेकिन उनको यह बात सालती रही । एक दिन अकबर ने अपने सभी दरबारियों को दरबार में हाजिर रहने का आदेश दिया । उस निश्चित दिन अकबर ने तीन फुट लंबी और दो फुट चौड़ी एक चादर मंगवाई । अकबर ने अपने दरबारियों से कहा कि मैं यहा लेट रहा हूं । यह चादर मुझे इस प्रकार ओढ़ाना है कि सिर से पैर तक मेरा पूरा शरीर ढक जाए। एक एक करके सभी लोग आने लगे और अकबर को उस चादर से ढंकने की कोशिश करने लगे लेकिन सामान्य कद-काठी के अकबर उस चादर से पूरी तरह से ढंक नहीं पा रहे थे। जब सब दरबारियों ने कोशिश करके देख लिया तो अकबर ने बीरबल को भी चादर ओढाने के लिए कहा । बीरबल वहां पहुंचे जहां अकबर लेटे हुए थे और अकबर से कहा- तेते पांव पसारिए जेते लांबी सौर यानि चादर के अनुसार अकबर को पैर सिकोड़ने के लिए कहा । पूरा दरबार बीरबल की बात सुनकर चकित था । अकबर ने बीरबल की बात मानी और पांव सिकोड़ लिए। छोटे चादर में भी उनका शरीर ढंक गया । अब बारी अकबर की थी, उन्होंने सभी दरबारियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोगों ने बीरबल की समझदारी देख ली ।
अकबर-बीरबल की इस कहानी से जो संदेश निकलते हैं वो ये कि हर शासक के पास एक तो बीरबल जैसा बुद्धिमान सलाहकार होना चाहिए और उसको पांव उतना ही फैलाना चाहिए जितनी उसकी चादर हो । दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी को अगर देखें तो वो रह-रहकर चादर का ध्यान नहीं रखती हैं और अपने पांव फैलाने लगती है। दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव के वक्त पार्टी को लगा था कि वो देश में एक वैकल्पिक राजनीतिक दल के रूप में स्वीकृत हो जाएगी और देशभर में अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए । नतीजा सबके सामने था । अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास समेत तमाम नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा था । इस वक्त पार्टी के नातओं ने माना था कि देशभर में चुनाव लड़ने का फैसला गलत था और उसके पहले पार्टी को दिल्ली में मजबूत करना चाहिए। जनता ने लोकसभा चुनाव के बाद 2015 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को अभूतवूर्व बहुमत दिया। एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल की अखिल भारतीय महात्वाकांक्षा कुलांचे मारने लगी थी । पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव आए और पार्टी ने फैसला किया कि वो विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाएगी । पार्टी के नेता तो पंजाब में सरकार बनना तय मान रहे थे । एक बार फिर से विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की महात्वाकांक्षा औंधे मुंह गिरी, पंजाब तक में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। बीरबल की उक्ति एक बार फिर चरितार्थ होती नजर आई- तेते पांव पसारिए जेती लांबी सौर।
अब दिल्ली के उपचुनाव के नतीजे में जब आम आदमी पार्टी की जमानत जब्त हो गई तो पार्टी के लिए संकट का वक्त है। आम आदमी पार्टी का हर किसी से टकराना दिल्ली की जनता को रास नहीं आ रहा है। एक जमाने में जो आम आदमी पार्टी की ताकत थी वही अब इसकी कमजोरी बनती जा रही है। दिल्ली में ऐतिहासिक बहुमत मिलने के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं से जनता की अपेक्षा भी ऐतिहासिक थी । आम आदमी पार्टी के नेता आरोपों से लेकर कोर्ट कचहरी तक में उलझे रहे और दिल्ली की बेहतरी के लिए कुछ खास कर पाए, ये दिखा नहीं। मोहल्ला क्लीनिक से लेकर स्कूलों में बेहतर कामकाज का दावा जरूर किया गया लेकिन जिस तरह से मोहल्ला क्लीनिक में स्वास्थ्य मंत्री की बेटी को सलाहकार बनाने का मुद्दा गरमाया उसको पार्टी ठीक से हैंडल नहीं कर पाई । जाली डिग्री के मसले पर मंत्री का जेल जाना, भ्रष्टाचार में मंत्री का लिप्त पाए जाने के बाद पद से हटाया जाना, विधायक की सेक्स सीडी, इन घटनाओं से आम आदमी पार्टी की छवि छीज रही थी लेकिन पार्टी के नेता बजाए दिल्ली में अपनी जमीन मजबूत करने के दूसरे राज्यों में अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा के पोषण में लगे रहे। दिल्ली की जमीन उनके हाथ से छूटती जा रही थी । आम आदमी पार्टी के मंत्रियों पर अपने चहेतों को सरकार में नियुक्ति कर मनमाने तरीके से वेतन घर आदि दिलाने का मामला भी सामने आने लगा। 
इसके अलावा अरविंद केजरीवाल के बयानों ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मनोरोगी कहना, वित्त मंत्री अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना आदि का भी दिल्ली की जनता पर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि जनता हर दिन इस तरह के आरोपों आदि से ऊबने लगी थी । इसका यह नुकसान हुआ कि हर कोई कहने लगा था सबसे झगड़ कर शासन नहीं चल सकता है। केजरीवाल को भले ही दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया लेकिन जब दो साल बाद भी जनता की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं तो उनकी नाराजगी सामने आने लगी । आम आदमी पार्टी ने जो चुनावी वादे किए थे उसमें से भी ज्यादातर हवाई ही साबित हुए। अब पार्टी के सामने एमसीडी चुनाव में अपनी प्रासंगिकता साबित करने का एक मौका है लेकिन जिस तरह से केजरीवाल चुनाव टालने की बात कर रहे हैं उससे लगता है कि उनका आत्मविश्वास हिल गया है और राजनीति में हिले आत्मविश्वास से जंग नहीं जीती जा सकती है ।   

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