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Thursday, April 6, 2017

वोट के लिए आतंक का समर्थन!

कश्मीर में पत्थरबाजों से सरकार और सुरक्षाबल परेशान हैं, आतंकवादियों से मुठभेड के दौरान ढाल बनकर खड़े होने की पत्थरबाजों की चाल ने सुरक्षा बलों को खासा परेशान कर रखा है । सुरक्षा बलों के सामने दोहरी समस्या खड़ी हो गई है क्योंकि अगर वो पत्थरबाजों पर कार्रवाई करते हैं तो उनको आलोचना का सामना करना पड़ता है और अगर कार्रवाई नहीं करते हैं तो आतंकवादियों को बचकर निकल जाने का रास्ता मिल जाता है । कश्मीर में अपनी जानपर खेलकर देश की रक्षा करनेवाले इन सिपाहियों की जान की फिक्र सूबे के कई नेताओं को नहीं है । वो तो बस अपनी सियासत को चमकाने में लगे हैं । आगामी नौ अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए होनेवाले उपचुनाव में सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अबदुल्ला नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के साझा उम्मीदवार हैं । उन्होंने पत्थरबाजों को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है । उनका कहना है कि पत्थरबाज अपने वतन के लिए अपनी जान दे रहे हैं उनका पर्यटन से कुछ लेना देना नहीं है । दरअसल फारुख अबदुल्ला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि कश्मीरी युवा अपनी प्राथमिकता तय करें कि वो टूरिज्म चाहते हैं या टेरररिज्म । प्रधानमंत्री मोदी को जवाब देने के बहाने फारूख अबदुल्ला ने एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश की । एक तो उन्होंने नरेन्द्र मोदी को उत्तर दिया और दूसरे पत्थरबाजों को वतन के लिए लड़ने वाला करार दे दिया । फारूक अबदुल्ला चुनाव के दौरान पत्थरबाजों के वोट के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं । उनकी संवेदना पत्थबाजों के साथ नहीं है, ना ही उनकी प्रतिबद्धता कश्मीर समस्या के हल को लेकर है इस वक्त उनकी पहली प्राथमिकता लोकसभा उपचुनाव जीतना है । चुनाव के वक्त हर दल के लोग अलगाववादियों को खुश करने में लग जाते हैं ।
फारुख अबदुल्ला जैसे वरिष्ठ नेता जब पत्थरबाजों को वतन के लिए जान देनेवाला बताते हैं तो वो जाने अनजाने पाकिस्तान के हाथों में खेलना शुरू हो जाते हैं । पिछले साल जुलाई में आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर करीब छह महीने तक सामान्य नहीं रह पाया था । उस दौर में हिंसक प्रदर्शन में नब्बे लोग मारे गए थे । इसके बाद हालात कुछ सामान्य होने लगे थे । पर कश्मीर में हालात ठीक हों ये पाकिस्तान को गवारा नहीं हैं । जैसे मौसम गर्म होने लगता है तो पाकिस्तान की सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई सीमापार से आतंकवादियों के भारत में घुसपैठ को बढ़ावा देने में लग जाती है । पिघलती हुई बर्फ की वजह से आतंकवादियों को भारत में घुसने में आसानी होती है और पाकिस्तान इस दौर में सूबे के युवाओं को उकसाकर सुरक्षाबलों को उलझाने की चाल चलता है ताकि घुसपैठ में आसानी हो ।
सोशल मीडिया के विस्तार और इंटरनेट के बढ़ते घनत्व ने पाकिस्तान को एक ऐसा हथियार दे दिया है जिससे वो बेहद आसानी से कश्मीरी युवाओं को बहकाता रहता है । केंद्र सरकार ने भी माना है कि पाकिस्तान व्हाट्सएप के इस्तेमाल से कश्मीरी युवाओं को भड़काता रहता है । व्हाट्स एप पर ऑडियो संदेश भेजकर वो कश्मीरी युवाओं को किसी भी आतंकी मुठभेड़ की जगह की जानकारी देकर वहां पत्थरबाजी के लिए उकसाता है, इसमें बहुधा धर्म की आड़ भी ली जाती है । दस मार्च को जब पदगामपोरा में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच एनकाउंटर हो रहा था व्हाट्सएप पर चंद पलों में युवाओं से मुठभेड़ स्थल पर पहुंचने को कहा गया । इतना ही नहीं इस मैसेज में आतंकवादी को बचाने के लिए पत्थरबाजी करने की अपील भी की गई थी । मामले के सामने आने के बाद जब मैसेज की जांच की गई तो पता चला कि ये मैसेज पाकिस्तान से जेनरेट हुआ था और चंद पलों में इसको इतना साझा किया गया कि वो वायरल हो गया । भारी संख्या में युवा वहां पहुंच गए और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करने लगे । सुरक्षा बलों की तमाम सतर्कता के बावजूद एक बुलेट पंद्रह साल के लड़के को जा लगी और उसकी वहीं मौत हो गई । कश्मीरी युवाओं को समझना होगा कि पाकिस्तान उनका इस्तेमाल कर रहा है । बड़गांव में आतंकवादियों के साथ जब तीन पत्थरबाज की मौत हो गई तो जम्मू कश्मीर के डीजीपी एस पी वैद्य को कहना पड़ा था कि जो युवक आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के साथ हो रहे मुठभेड़ की जगह पर जाते हैं और सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकते हैं वो खुदकुशी करने जाते हैं । एक तरफ राज्य का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी इस तरह की सख्त चेतावनी दे रहा है तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री पत्थरबाजों को वतन के लिए लड़ने वाला बता कर महिमामंडित कर रहा है । यही राजनीति कश्मीर में हालात सामान्य करने की राह में सबे बड़ी बाधा है ।
सिर्फ ये मानना बड़ी भूल होगी कि पाकिस्तान या फिर उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी आईएआई कश्मीरी यावओं को बरगला कर अपना उल्लू सीधा कर रही है । दरअसल पाकिस्तान अपनी जिहादी मानसिकता से बाहर नहीं आ सकता है । परवेज मुशर्ऱफ कहा ही करते थे कि भले ही कश्मीर समस्या का हल हो जाए लेकिन भारत के खिलाफ जेहाद जारी रहेगा । हाल ही में एन आई ए की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि जुलाई दो हजार सोलह के बाद कश्मीर में हिंसा और गड़बड़ी फैलाने के लिए कई सौ करोड़ रुपए हिजबुल मुजाहीदीन के स्थानीय मददगारों को बांटे गए हैं । आईएसआई के टुकड़ों पर पलनेवाले नेताओं की कश्मीर में कमी नहीं है, इनमें से कइयों को तो भारत सरकार की सुरक्षा भी मिली हुई है । भारत सरकार की सुरक्षा में जीवन बसर करनेवाले नेता, जो भारतीय पासपोर्ट पर दुनियाभर घूमते हैं लेकिन वो भारत को अपना वतन नहीं मानते हैं, से सुरक्षा वापस लेकर उनको उनके हाल पर छोड़ने का वक्त आ गया है । भारतीय करदाताओं के पैसे पर इन दोहरे चरित्रवाले नेताओं को सुरक्षा और सुविधा दोनों देना उचित नहीं है ।  
भारत के सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने जब कहा था कि पत्थरबाज और आतंकी हमलों के बीच आनेवाले लोग आंतकी माने जाएंगे तब कांग्रेस के नेता पी चिंदबरम से लेकर कई लोगों ने विरोध जताया था । लेकिन अब क्या ? अब तो पत्थरबाज खुले आम आतंकवादियों को बचाने के लिए सुरक्षा बलों को घेरने लगे हैं, उनपर पत्थर बरसा रहे हैं । पहले कांग्रेस के नेता चिदंबरम और अब उनके राजनीतिक दोस्त फारुख पत्थरबाजों के समर्थन में हैं ।

कश्मीर के बिगड़ते हालात के बीच यह बात भी चिंताजनक है कि सूबे की खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं । क्या वो पत्थरबाजों के खतरों से राज्य पुलिस या सुरक्षा बलों को पहले से आगाह करने में नाकाम रही है । महबूबा मुफ्ती सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करना होगा और स्थानीय खुफिया एजेंसियों को जिम्मेदार बनाने के साथ साथ उनकी जिम्मेदारी भी तय करनी होगी । स्थानीय खुफिया एजेंसियां जितनी मजबूत होंगी, सुरक्षा बलों का काम उतना ही आसान होगा । अब वक्त आ गया है कि भारत सरकार को इस्लामिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के मेल से रचे जा रहे पाकिस्तानी षडयंत्र से उपजने वाले खतरे का सही से आंकलन करते हुए सख्त कदम उठाने होंगे । वोटबैंक की राजनीति के लिए कब तक सुरक्षा बलों की जान को दांव पर लगाते रहेंगे । कश्मीर में बेहद सख्ती के साथ कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि वो चाहे किसी भी उम्र या मजहब को हो, अगर आतंकवादियों के साथ है तो उसके साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार ही किया जाना चाहिए । जरूरत पड़े तो फारूक जैसे दिग्गज नेता को भी कानून की ताकत का एहसास करवाना चाहिए । 

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