हिंदी का विशाल पाठक वर्ग, हिंदी का बहुत बड़ा बाजार, हिंदी के
बाजार पर पूरी दुनिया के मार्केटिंग विभागों की नजर लेकिन हिंदी अबतक धनोपार्जन की
भाषा क्यों नहीं बन पा रही है । यह एक ऐसा सवाल है जिसपर गंभीरता से विचार करने का
वक्त आ गया है । दुनिया के कई देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई शुरू
हो चुकी है, कई देशों की सरकार ने बच्चों को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित करने के
लिए योजनाएं बनाई हैं । यह सब इस वजह से हो रहा है कि हिंदी का बाजार बहुत बड़ा है
। हिंदी के इस बाजार
में एक जगह साहित्य की भी है । उस साहित्य की जिस पर कोई भी समाज गर्व करता है । साहित्यकार
की समाज में एक इज्जत होती है लेकिन इस इज्जत के पीछे एक बड़ा संघर्ष होता है । वह
संघर्ष है अपनी भाषा में रचे साहित्य से धनोपार्जन नहीं हो पाने से उपजने वाली
रोजमर्रा की समस्याओं से । सवाल यही है कि हिंदी साहित्य रचनेवाले लेखकों के सामने
धनोपार्जन की ये समस्या क्यों आती है ।
चंद दिनों पहले एक सर्वे आया था जिसके मुताबिक अंग्रेजी में
लिखनेवाले लेखकों ने अपनी रचनाओं के बूते पर अकूत संपत्ति अर्जित की है और उनमें
से कई लेखकों की रचनाओं का अनुवाद दुनिया की पचास से अधिक भाषाओं में हो चुका है ।
पेशे से वकील और क्राइम फिक्शन लिखनेवाले जॉन ग्रीशम की संपत्ति साढे तेरह मिलियन
पाउंड है यानि अगर हम भारतीय रुपए में देखें तो यह एक अरब से उपर जाकर रुकती है ।
जॉन ग्रीशम की अबतक तीन करोड़ किताबें बिक चुकी हैं । जॉन ग्रीशम के उपन्यासों की
थीम पर द फर्म और द पेलिकन ब्रीफ नाम से फिल्में भी बनाई जा चुकी हैं । जॉन ग्रीशम
उन बिरले लेखकों में हैं जिनकी किताबों का पहला प्रिंट ऑर्डर बीस लाख से अधिक होता
है । जाहिर है किताबें बिकती हैं तभी प्रकाशर उनको छापता भी है । इसी तरह से एक और
क्राइम फिक्शन लेखक जेम्स पैटरसन की कुल संपत्ति करीब साढे इकहत्तर मिलियन पाउंड
यानि छह अरब रुपए से अधिक है । जेम्स पैटरसन दुनिया के सबसे ज्यादा अमीर लेखक माने
जाते हैं । उनके बारे में तो कहा जाता है कि पिछले करीब डेढ दशक से बेस्ट सेलर
लेखक बने हुए हैं । एलेक्स क्रास क्राइम सीरीज के लेखक पैटरसन की अब तक करीब साढे
तीन सौ मिलियन यानि पैंतीस करोड़ किताबें बिक चुकी हैं । यब सुनना एक सपने के जैसा
लगता है । अगर हम यह मान भी लें कि पंद्रह सालों में पैंतीस करोड़ किताबें बिकी
हैं तब भी यह सपने सरीख् ही लगता है । पैटरसन दुनिया के पहले लेखक हैं जिनकी दस
लाख से ज्यादा ई बुक्स बिक चुकी हैं और उसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड
रिकॉर्ड में भी दर्ज किया जा चुका है । इसके अलावा एक और बेस्ट सेलर लेखिका हैं जे
के रॉलिंग जिनके हैरी पॉटर सिरीज के किताबों की पूरी दुनिया के पाठक इंतजार करते
हैं । इनकी कुल संपत्ति भी करीब साढे चौदह मिलियन पाउंड यानि सवा अरब रुपए है । ऐसा
नहीं है कि जे के रॉलिंग शुरुआत से ही सफल रही हैं । हैरी पॉटर सिरीज की पहली
किताब को कई प्रकाशकों ने छापने से मना कर दिया था और काफी संघर्ष के बाद
ब्लूम्सबरी ने उन्नीस सौ सत्तानवे में उसको छापा और उसके बाद की बातें तो इतिहास
है । इन नामों के अलावा दो और लेखक हैं जो अपने लेखन की बदौलत अरबपति हैं । फिफ्टी
शेड्स ऑफ ग्रे ट्रायोलॉजी लिखकर दुनिया भर में मशहूर होनेवाली लेखिका ई एल जेम्स
की संपत्ति भी दस मिलियनम पाउंड से उपर है । ई एल जेम्स के बारे में तो कहा जाता
है कि उनकी अबतक दस करोड़ किताबें बिक चुकी हैं जिनमें से साढे तीन करोड़ तो सिर्फ
अमेरिका में बिकी हैं । बाल साहित्य लेखक जेफ केनी भी अरबपति हैं । डायरी ऑफ अ
विंपी किड लिखकर पैसा और प्रसिद्धि पानेवाले केनी पहले अखबार में कार्टूनिस्ट बनना
चाहते थे लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो कई नौकरियों को करने के बाद उन्होंने लेखन
में हाथ आजमाया । दो हजार पंद्रह में उनकी किताब ओल्ड स्कूल के ऑनलाइन वर्जन को
करीब दो करोड़ हिट्स मिल चुके हैं ।
यह तो कहानी है उस दुनिया की जहां लेखन में पैसा है । सवाल यही है
कि हिंदी में लेखकों को पैसा क्यों नहीं मिल पाता है । जिसको लेकर उनकी मृत्यु के
बाद एक अप्रिय विवाद भी उठता है । क्या वजह है कि ऐसी खबरें नहीं आती कि हिंदी के
अमुक लेखक को किसी प्रकाशक ने किसी कृति के लिए अग्रिम लाखों का भुगतान किया । अग्रिम
भुगतान की परंपरा हिंदी साहित्य में लगभग नहीं के बराबर है । कुछ प्रकाशक कुछ
लेखकों को मामूली राशि का भुगतान करते होंगे । क्या हिंदी साहित्य के पाठक नहीं है
या फिर हिंदी के पाठक खरीदकर नहीं पढ़ते या फिर प्रकाशकों के स्तर पर कोई गड़बड़ी
होती है । दरअसल हिंदी साहित्य का प्रकाशन अब भी एक कारोबार के रूप में विकसित
नहीं हो पाया है । हिंदी प्रकाशन जगत अब भी लेखक-प्रकाशक संबंधों के आधार पर चलता
है जहां प्रोफेशनलिज्म को खास अहमियत नहीं दी जाती है । किताब छपने के पहले लेखक
और प्रकाशक मिलकर शर्तें तय नहीं करते हैं । सालों से पारिवारिक सा रिश्ता बन गया
है जो निभाया जा रहा है । अलग अलग लेखकों के अपने अपने प्रकाशक हैं । यह भी ज्ञात
नहीं होता है कि कोई लेखक किसी प्रकाशक से अपनी कृति के पहले मोलभाव करता हो । हिंदी
के ज्यादातर लेखकों को लगता है कि प्रकाशकों से पैसों की बात करना उचित होता नहीं
है और वो संकोच में होते हैं । किताब छपने के बाद जब कृति चर्चित होने लगती है तो
लेखक को लगता है कि उनको पैसे मिलने चाहिए फिर भी वो सीधे बात करने में संकोच करते
हैं और इधर उधर से प्रकाशकों तक संदेश पहुंचाने लगते हैं । होना यह चाहिए कि किताब
छपने के पहले लेखक और प्रकाशक साथ मिलकर बैठें और फिर किताब को लेकर उसकी
मार्केटिंग को लेकर चर्चा हो । किताब को लेकर रणनीति बने और शर्तें प्रोफेशनल और
पारदर्शी हों ताकि हिंदी में भी कोई जेम्स पैटरसन या जे के रॉलिंग जैसा लेखक हो
सके जिसके पास अरबों की संपत्ति सिर्फ लेखन से हो ।
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