क्रिसमस के दिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल का आखिरी ‘मन की बात’ की तो उन्होंने
आनेवाले दिनों के लिए अपनी सरकार के मंसूबे को साफ कर दिए । देश को संबोधित ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने देश से वादा किया है कि वो भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ अपनी
जंग जारी रखेंगे । उन्होंने नोटबंदी को इस दिशा में उठाया गया पहला कदम बताया और
कहा कि कालेधन और भ्रष्टाचार को खत्म करने का ये आखिरी प्रयास नहीं है । उन्होंने
ऐलान किया कि कालेधन के कुबेरों को बख्शा नहीं जाएगा । उन्होंने साफ किया कि नोटबंदी
की सीमा खत्म होने के बाद सरकार अब बेनामी संपत्ति रखनेवालों पर वार करने जा रही
है । अपने चौंतीस मिनट के मन की बात में प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि बेनामी
संपत्ति कानून अट्ठाइस साल पहले पास कर दिया गया था लेकिन कमजोर राजनीतिक
इच्छाशक्ति की वजह से उसको अमल में नहीं लाया गया । नतीजा यह हुआ कि बेनामी
संपत्ति कानून के तहत ना तो नियम बनाए गए और ना ही उनको अधिसूचित किया गया । उन्होंने
जोर देकर कहा कि उनकी सरकार इस कानून को धारदार और प्रभावी तरीके से लागू करने जा
रही है दरअसल राजीव गांधी के शासनकाल के दौरान उन्नीस सौ अठासी में बेनामी संपत्ति
कानून बना था लेकिन वो अट्ठाइस साल तक ठंडे बस्ते में रहा । अब संसद ने अगस्त में इस
कानून को नए सिरे से पारित किया । इसके मुताबिक बेनामी लेन-देन का जुर्म साबित
होने पर अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है और संपत्ति के बाजार मूल्य का पच्चीस
फीसदी तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है ।
‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री
ने नोटबंदी के विरोध पर कहा कि जो लोग खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं वो
विमुद्रीकरण की खामियां गिनाने में लगे हैं । उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि
विमुद्रीकरण को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की गई । दरअसल हैदराबाद से सांसद
असदुद्दीन ओबैसी ने कुछ दिनों पहले ये आरोप लगाया था कि मुस्लिम बहुल इलाकों के
एटीएम में पैसे नहीं डाले जा रहे हैं । ओबैसी का नाम लिए बगैर प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने सांप्रदायिक मानसिकता पर प्रहार किया । प्रधानमंत्री के मुताबिक
अगर विपक्ष संसद चलने देता तो वहां राजनीतिक दलों की फंडिंग पर भी बात होती और
संभव है कि कुछ अच्छा निकलकर आता । नरेन्द्र मोदी के मुताबिक अगर संसद में बहस होती
तो राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जो भ्रम की स्थित है वो भी कुछ साफ होती ।
उन्होंने पूरे देश को कालेधन के खिलाफ मुहिम में सरकार का साथ देने के लिए आभार भी
जताया । रिजर्व बैंक के नोटबंदी को लेकर लगातार नियम बदलने पर भी प्रधानमंत्री ने
अपनी तरफ से सफाई दी । उन्होंने कहा कि पिछले सत्तर साल से बेइमानी और भ्रष्टाचार
से बड़ी ताकतें जुड़ी हुई हैं जो सरकार के कदमों को नाकाम करने के लिए सक्रिय हो
जाते हैं और हर अच्छे कदम की काट निकाल लेते हैं । उनके मुताबिक इन ताकतों को
नाकाम करने के लिए सरकार को भी तू डाल डाल हम पात पात वाली नीति अपनानी पड़ती है ।
नियमों के बदलने से जनता को दिक्कत नहीं बल्कि फायदा ही हुआ । यह माना जाना चाहिए
कि सरकार जनता की सहूलियत के लिए लचीला रुख अख्तियार करती रही और जब जब जैसी जैसी
दिक्कतों को सामने लाया गया तब तब सरकार ने जनता को सहूललियत देने के लिए उसमें
बदलाव किया । यह सरकार की संवेदनशीलता है । इससे भ्रम की स्थिति नहीं बल्कि
सहूलियतें बढ़ीं । नोटबंदी को लेकर देशभर में कुछ ताकतों ने कई तरह की अफवाहें
फैलाईं लेकिन जनता के भरोसे ने सबको नाकाम कर दिया ।
नोटबंदी को लेकर पूरे देश में पिछले आठ नवंबर से चर्चा हो रही है ।
सरकार पर इस तरह का आरोप भी लगाया जा रहा है कि इससे जनता को दिक्कत हो रही है। नोटबंदी के बाद से जनता ने अपने व्यवहार से यह साबित
कर दिया कि वो कालाधन और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए इन दिक्कतों को सहने के
लिए तैयार है । जैसे जैसे समय बीत रहा है
तो धीरे-धीरे दिक्कतें कम भी हो रही हैं । शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में
बैंकों में कतार कम हो गई हैं । लोगों को पैसे मिलने लगे हैं । बैंक के गड़बड़ी
फैलानेवाले कर्मचारियों पर कार्रवाई के बाद बैंकिंग सिस्टम की चूलें भी कस दी गई
हैं । नोटबंदी के फैसले से जुड़े लोगों का मानना है कि वो बैंक कर्मचारियों की
गड़बड़ी का अंदाजा नहीं लगा सके थे वर्ना जनता को इतनी दिक्कत भी नहीं होती । अब
दूसरी बात ये भी उठाई जा रही है कि इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा । संभव
है कि बड़े अर्थशास्त्रियों के अपने तर्क हों लेकिन सरकार भी इस आसन्न खतरे से
निबटने को लेकर सतर्क नजर आ रही है । एक आकलन के मुताबिक जनवरी से मार्च की तिमाही
में इसका असर विकास दर पर पड़ सकता है लेकिन उसके अगली तिमाही से हालात बेहतर हो
सकते हैं। जनता को होनेवाली दिक्कतों पर जितनी चर्चा हो रही है उसके अनुपात में
श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को होनेवाले फायदे पर मंथन नहीं हो रहा है
। जिन मजदूरों को नगद भुगतान पर सालों साल तक काम करना पड़ता था उनको अब चेक से
भिगतान करना होगा । चेक से भुगतान करने की वजह से उन सबकी इंट्री बुक्स में करनी
होगी । अब अगर मजदूरों की एंट्री बुक्स में होगी तो उनका भविष्य निधि खाता खुलवाना
होगा और उसमें पैसे जमा करवाने होंगे । इसी तरह से उनको ईएसआई का लाभ भी देना होगा
जो कि उनके परिवार के स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर है । अब हमें इंतजार करना चाहिए
कि सरकार तीस दिसंबर के बाद क्या क्या कदम उठाती है ।
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