काफी दिनों से सोशल मीडिया पर कवियों को अपनी कविताओं का पाठ करते
हुए वीडियो पोस्ट करते देखता था । फेसबुक पर मुंबई की कवयित्री चित्रा देसाई और
स्मिता पारिख का कविता पाठ करते हुए वीडियो देखा । पहले तो यह लगता था कि कवि अपनी
कविताओं के प्रमोशन के लिए खुद से ऐसा कर रहे हैं, तब भी लगा था कि अगर कवि खुद भी
कर रहा है तो उनकी ये पहल संतोष देनेवाली है । फिर ये देखने को मिला कि किसी महान
कवि की कृतियों को मशहूर शख्सियतें पढ़ रही हैं और कविता पाठ के पहले उस कविता से
जुड़े दिलचस्प प्रसंग भी सुना रहे हैं । जैसे रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी कृति
रश्मि-रथी का पाठ करते हुए फिल्म अभिनेता मनोज वापजेयी का वीडियो आया । तो उसमें
मनोज कविता पाठ के पहले ये बताते हैं कि कैसे उस कविता की पंक्तियों ने उनको
संघर्ष के दिनों में प्रेरणा दी । मनोज ने इस कविता की जो पंक्तियां सुनाई उसमें
थी- सौभाग्य ना सब दिन सोता है देखें, आगे क्या होता है । इन सबको देखने के बाद
मुझे लगा कि कोई संगठित तरीके से कविता को प्रमोट करने के लिए काम कर रहा है । मैंने
पता लगाया तो पता चला कि मनीष गुप्ता नाम के एक कविता प्रेमी हैं जिन्होंने ये
बीड़ा उठाया है । बात आई गई हो गई लेकिन मन के कोने अंतरे में ये बात थी कि इस
बारे में पता लगाया जाएगा । जल्द ही वो अवसर भी मिल गया ।
लोकसभा टीवी पर लोकप्रिय साहित्य पर होनेवाली एक बहस में मनीष
गुप्ता साथी पैनलिस्ट के तौर पर मिले । कार्यक्रम खत्म होने के बाद बातचीत में पता
चला कि मनीष गुप्ता फिल्मकार हैं और हिंदी और उर्दू कविता से उनको प्यार है । अपने
इसी प्यार को अपने हुनर से मिलाकर वो कविताओं को शूट कर यूट्यूब पर डालते हैं । यूट्यूब
पर हिंदी कविता के नाम से एक चैनल है जिसपर हिंदी की कई बेहतरीन कविताओं का पाठ
उपलब्ध है । यूट्यूब पर मौजूद ये चैनल काफी लोकप्रिय है । मनीष ने बताया कि कुछ
इसी तरह का काम वो उर्दू शायरी को प्रोमोट करने के लिए भी कर रहे हैं और उर्दू
स्टूडियो के नाम यूट्यूब पर एक अलग चैनल है ।
यह एक ऐसी पहल है जो नए पाठकों को हिंदी कविता से जोड़ती है । इंटरनेट
के युग के पाठकों का दिनकर से लेकर अज्ञेय तक और चित्रा देसाई से लेकर स्मिता
पारिख तक की कविताओं से परिचय हो रहा है । एकतरफ जहां हम हर रोज इस बात की चर्चा
सुनते हैं कि हिंदी में कविता के पाठक नहीं हैं । प्रकाशक भी कविता संग्रह छापने
से हिचकते हैं वहीं दूसरी तरफ यूट्यूब पर हिंदी कविता चैनल लोकप्रिय हो रहा है । अब
यह एक तरह की ऐसी स्थिति है जिसका जवाब हिंदी के लेखकों को ढूंढना चाहिए । एकतरफ
तो हिंदी कवि सम्मेलन लगभग स्टैंडअप कमेडियनों के हवाले हो गया है तो दूसरी तरफ
गंभीर कवियों को लोग यूट्यूब पर सुन रहे हैं । दरअसल अगर हम देखें तो हिंदी के
पाठकों का जो विशाल पाठक वर्ग है उसतक पहुंचने के लिए हिंदी कविता ने अस्सी के दशक
के बाद प्रयास छोड़ दिया । कवि गोष्ठियों से पाठकों का एक साहित्यक संस्कार विकसित
होता था जो कि आगे चलकर इसको एक गंभीर पाठक के रूप में गढ़ता था । उसके लगभग खत्म
होने की वजह से नए पाठकों का निर्माण भी नहीं हो पा रहा है । हिंदी कविता की इस
पहल और उसकी लोकप्रियता से यह उम्मीद तो जगी है कि हिंदी कविता के पाठक अब भी
मौजूद हैं जरूरत है उनतक पहुंचने की ।
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