रेखा- ये नाम लेते ही एक ऐसे अभिनेत्री की तस्वीर सामने आती है
जिसकी जिंदगी एक पहेली की तरह है । वो पहेली जिसको सुलझाने का प्रयास अबतक कई
लेखकों ने किया है लेकिन वो सुलझने की बजाए उलझती चली जाती है । भारतीय फिल्मों
में मीना कुमारी के बाद रेखा ऐसी अभिनेत्री के तौर पर आईं जिनकी जाति जिंदगी के
बारे में जानने की प्रबल इच्छा उनके प्रशंसकों में है । रेखा ने अपने व्यक्तित्व
के आसपास एक ऐसा तिलिस्म भी बनाया हुआ है जिसमें बहुत कम लोगों का प्रवेश है । रेखा
की जिंदगी के कई हिस्से हैं और हर हिस्से में अलग अलग तरह का व्यक्तित्व सामने आता
है । कई लेखकों ने रेखा की जिंदगी के इन अलग अलग छोरों को पकड़ने की कोशिश की है
लेकिन सभी छोर किसी एक लेखक के हाथ आ नहीं पाए हैं । राजेश खन्ना पर किताब लिखकर
चर्चा में आए यासिर उस्मान ने भी रेखा की जिंदगी के पन्ने पलटने की कोशिश की है ।
उनकी नई किताब रेखा- द अनटोल्ड स्टोरी बाजार में आई तो पाठकों ने उसको हाथों हाथ
लिया । इससे एक बार फिर साबित हुआ कि रेखा में लोगों की कितनी दिलचस्पी है । चंद
महीनों में यासिर की इस किताब के कई संस्करण हो गए । रेखा- द अनटोल्ड स्टोरी में
कितनी अनकही है इसपर बहस हो सकती है ।
दरअसल ये किताब बगैर रेखा से बात किए लिखी गई है । लेखक के मुताबिक
उन्होंने रेखा से कई
बार बात करने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो सके । दरअसल
रेखा अपने आसपास जिस तरह का माहौल बनाकर रखती हैं या फिर अपने व्यक्तित्व को जिस
तरह के आवरण में ढंक कर चलती हैं उसमें बगैर उनसे बात किए उनके व्यक्तित्व की
परतों को खोलना मुमकिन ही नहीं है । महज चौदह साल की उम्र में हिंदी फिल्मों में
कदम रखनेवाली रेखा बोल्ड सीन को लेकर चर्चित हुईं । साठ के दशक के आखिरी वर्षों
में या फिर सत्तर के दशक की शुरुआत में रेखा अपनी बिंदास अदाओ के साथ-साथ बेबाक
बोल की वजह से भी लोकप्रिय हुई थी । छुटपन की उस उम्र में भी रेखा को पता था कि
फिल्मी पत्रिकाओं पर कैसे राज किया जा सकता है और उसने किया भी।
कई वर्षों तक वो बी ग्रेड की फिल्मों में काम करती रहीं लेकिन
बावजूद इसके रेखा को करीब करीब सभी हिंदी अंग्रेजी फिल्मी पत्रिकाओं में प्रमुखता
से जगह मिलती रही । रेखा की इस काबिलियत पर भी अलग से विचार करने की जरूरत है । बी
ग्रेड फिल्मों में सेक्सी डांस करनेवाली रेखा ने ऐसा क्या कर दिया कि अभी हाल ही
में यतीन्द्र मिश्र की लता की सांगीतिक यात्रा पर लिखी किताब लता सुरगाथा में जब
लेखक उनसे पूछते हैं कि बाद की पीढ़ी में कौन सी अभिनेत्री उनको जंची ? जबाव में पहला नाम-
‘रेखा । इसमें कोई शक
नहीं कि उनकी एक्टिंग कमाल की है । डांसर तो वो हैं ही, उमराव जान में उनके जैसा
काम आज भला कितने लोग कर सकते हैं ? उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा
न्याय किया था । आज भी उमराव जान मेरी पसंद की फिल्मों में शामिल है ।‘ लता मंगेशकर ने
रेखा के बारे में एक और दिलचस्प बात कही- और सबसे बड़ी बात ये है कि वो साउथ
इंडियन होते हुए भी उर्दू अच्छा बोलती हैं । वे लाजवाब ढंग से सुंदर हैं और यह
सवाल ही नहीं उठता है कि वेव किसी फिल्म में कम अच्छा काम करें । वह जिस फिल्म में
होती हैं,वह फिल्म अपने आप उपर उठ जाती हैं । आप उऩकी उत्सव देखें, तो उसमें वो
जिस तरह से राजनर्तकी बनकर अपना पूरा किरदार संभाल रही हैं वह बहुत सुन्दर है ।
उनका सिलसिला का रोल भी मुझे पसंद है । उनकी हर फिल्म को देखकर यह लगता है कि वह
अपने किरदार को समझकर करती हैं । मुझे रेखा जैसी समझदार अभिनेत्री जल्दी दूसरी
दिखाई नहीं पड़ती ।‘
लता मंगेशकर ने रेखा की जिन खूबियों को गिनाया है उसपर यासिर
उस्मान ने भी अपनी किताब रेखा- द अनटोल्ड स्टोरी में विचार किया है या फिर इन
बातों का जिक्र है । जैसे लता मंगेशकर इस बात से मुतमईन हैं कि रेखा उर्दू अच्छा
बोलती हैं । दरअसल अगर यासिर की किताब में उल्लिखित तथ्यों को मानें तो रेखा को
तमिल छोड़कर कोई भाषा आती नहीं थी लेकिन उसमें सीखने की जबरदस्त क्षमता थी । जब
निर्माता कुलजीत पाल रेखा जो उस वक्त भानुरेखा को साइन करने के लिए उसके घर पहुंचे
तो उन्होंने पूछा कि क्या तुम अंग्रेजी बोल सकती हो तो रेखा ने साफ कहा नहीं । लेकिन
उसकी मां ने कुलजीत को भरोसा दिया कि रेखा में सीखने की जबरदस्त क्षमता है । रेखा
का टेस्ट लेने के लिए कुलजीत ने हिंदी की चंद लाइनें रोमन में लिखकर उसको दी ।
जबतक वो चाय पीते तबतक रेखा कमरे से वापस आई और बोली- ‘सतीश, अब तो वो दिन
आ गए हैं कि तुम्हारे और मेरे बीच में एक फूलों का हार भी नहीं होना चाहिए, हमारे
दो जिस्म और दो जान एक होने चाहिए ।‘ इतना साफ उच्चारण कि कुलजीत हैरान ।
रेखा को फिल्म के लिए साइन कर लिया जाता है । बाद में भी रेखा कठिन से कठिन डॉयलॉग
को अपनी इस क्षमता की वजह से बेहतर तरीके से डिलीवर कर पाईं। कहा तो ये भी जाता है
कि अमिताभ बच्चन की संगति में रेखा ने अपने उच्चारण पर बहुत काम किया । कहा तो ये
भी जाता है कि रेखा का मेकओवर भी अमिताभ के संपर्क में आने के बाद ही हुआ । रेखा
के बारे में कहने को बहुत कुछ है और कहा भी बहुत गया है । यासिर ने इन सारे कहे गए
को एक साथ अपनी इस किताब में इकट्ठा किया है ।
रेखा ने बहुत ही कम उम्र में जिंदगी के कई रंग देख लिए । बचपन में
अवैध संतान होने का दंश झेलने के बाद जब उसकी मां गरीबी से उबकर हिंदी फिल्मों की
ओर रुख करती है । वो दौर बॉलीवुड में गोरे रंग की नायिकाओं का दौर था लेकिन सांवली
या लगभग काली होने के बावजूद रेखा ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई । हलांकि
अपनी इस उपस्थिति को दर्ज करवाने की रेखा ने लगभग अपमानजनक संज्ञाओं के साथ कीमत
भी चुकाई । उसको सेक्स बम से लेकर मर्दों को छीनने जैसे उपमाओं से नवाजा गया लेकिन
बेफिक्र रेखा अपनी राह पर आगे चलती गई । यासिर की किताब में रेखा के कई प्रेम
प्रसंगों का उल्लेख मिलता है जिसमें विनोद मेहरा से लेकर जीवन के बेटे किरण कुमार
से चले उनके इश्क का जिक्र है । इस बात के भी संकेत हैं कि रेखा इनमें से कइयों के
साथ सहजीवी भी रहीं लेकिन तब भी उनकी उम्र बीस पच्चीस साल के बीच ही थी । विनोद
मेहरा के साथ तो शादी भी की लेकिन उनकी मां की वजह से वो ससुराल में रह नहीं सकीं
और उनका संवंध विच्छेद हो गया । उस दौर में रेखा की खुदकुशी की कोशिशों का भी
जिक्र है । ये किताब रेखा की दिल्ली के कारोबारी मुकेश अग्रवाल के साथ शादी के
प्रसंग से शुरू होती है और फिर वो उनके अतीत और वर्तमान में आवाजाही करती है । मुकेश
अग्रवाल के साथ उनके संबंधों का अंत मुकेश की खुदकुशी से होता है । खुदकुशी की वजह
क्या रही थी इसपर लेखक ने निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा है लेकिन उन्होंने बेहद
संवेदनशीलता के साथ दोनों के संबंधों को उस दौर के उनके दोस्तों और पत्रिकाओं में
छपे लेखों को आधार बनाते हुए विस्तार दिया है । रेखा पर बात हो और उसमें अमिताभ
बच्चन के साथ उनके प्रेम संबंधों का जिक्र ना हो ये मुमकिन ही नहीं है । यासिर ने
भी अपनी किताब के कई हिस्से इस प्रेम संबंध पर लिखे हैं । सबसे दिलचस्प किस्सा है
सिलसिला फिल्म के दौरान और उसके पहले के स्टार कास्ट को फाइनल करने का प्रसंग । यश
चोपड़ा ने कितने पापड़ बेले थे जब रेखा, अमिताभ और जया को इस फिल्म में काम करने
के लिए तैयार किया था ।
उनहत्तर में हिंदी फिल्मों में कदम रखनेवाली रेखा दो साल के अंदर
प्रोड्यूसर्स की पसंद बनकर उभरती है । बहत्तर और तिहत्तर दो सालों में उनकी सोलह
फिल्में रिलीज होती हैं लेकिन उनको एक अभिनेत्री के तौर पर पहचान नहीं मिल पाती है
। उनहत्तर में ही उनपर श्याम बेनेगल की नजर पड़ती है जो उस वक्त विज्ञापन फिल्में
बनाते थे । उन्होंने गोल्ड स्पॉट के विज्ञापन में रेखा को फीचर किया था जिसमें
रेखा अपनी दिलकश अंदाज में कहती हैं – ताजगी के पास आइए, अपनी प्यास बुझाइए । उस
दौर रेखा का ये पोस्टर काफी चर्चित रहा था और उनकी सेक्सी बाला की छवि को उभारता
था । रेखा पर लिखी इस किताब को जब आप एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो पढ़ते चले
जाएंगे क्योंकि उनकी जिंदगी से जुड़े लगभग सारे गॉसिप एक जगह पढ़ने को मिल जाते
हैं । यासिर ने रेखा के समकालीन अभिनेत्रियों के हवाले से भी कई बातें कही हैं । कुल
मिलाकर अगर देखा जाए तो ये किताब दिलचस्प बनी है लेकिन रेखा के अभिनय कला से
ज्यादा इसमें उनकी जाति जिंदगी की कहानियां हैं जो कमोबेश पहले से ज्ञात हैं ।
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