पिछले दिनों एक खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है । यह
प्रवृत्ति है भारतीय सेना को सियासत में खींचने की । अपनी सियासी चाल के लिए सेना
के इस्तेमाल की । आजादी के बाद से हमारे देश में सेना सियासत से ऊपर रही हैं । जिस
तरह से विदेश नीति को लेकर कमोबेश सभी दल एक धरातल पर रहते हैं उसी तरह से सेना को
लेकर भी सभी दलों में लगभग मतैक्य रहता आया है । लेकिन अब सेना को भी राजनीति के
दलदल में खींचने की कोशिश होती दिख रही है । जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा
में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया तब भी उसके दावों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष सवाल
खड़े किए गए । राजनीतिक दलों ने पाकिस्तान के बहानों के हवाले से केंद्र सरकार से सर्जिरल
स्ट्राइक पर सबूत और सफाई मांगी जो परोक्ष रूप से भारतीय सेना के दावों को कठघरे
में खड़ा करने जैसा था । यह तब हुआ जब सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने खुद प्रेस
कांफ्रेंस करके देश को बताया कि उनके जांबाजों ने इसको अंजाम दिया है । कांग्रेस
उपाध्यक्ष ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर सैनिकों के खून की दलाली जैसा संगीन
इल्जाम तक जड़ दिया था । दरअसल विपक्ष को लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई
में भारतीय जनता पार्टी इस सर्जिकल स्ट्राइक का सियासी फायदा उठाएगी । सियासी दल
अपने फैसलों का सियासी फायदा उठाते रहे हैं । उन्नीस सौ इकहत्तर में जब इंदिर
गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बनवा दिया था तब भी कांग्रेस ने कई
राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव की तारीखें तय समय से पहले कर ली थीं । मंशा क्या
रही होगी ये कहने की आवश्यकता नहीं है ।
अब थल सेनाध्यक्ष के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की
नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं । कांग्रेस का आरोप है कि भारत सरकार
ने लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को सेनाध्यक्ष नियुक्त करके एक महान संस्था के साथ खिलवाड़
किया है । दरअसल लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत से सेना में दो वरिष्ठ अफसर मौजूद
हैं, लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्शी और लेफ्टिनेंट जनरल पी एम हैरिज । कांग्रेस का
आरोप है कि इन दोनों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करके केंद्र सरकार सेना में राजनीति
कर रही है । राजनीति करने का आरोप लगाकर कांग्रेस ये भूल गई कि उन्नीस सौ तिरासी
में इंदिरा गांधी ने जनरल एस के सिन्हा की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर जनरल ए एस वैद्य
को सेनाध्यक्ष बनाया था । उन्नीस सौ अठासी में जब एस के मेहरा को वायुसेना का
अध्यक्ष बनाया गया तब भी एयर मार्शल एस एस सिंह की वरिष्ठता को नजरअंदाज किया गया
था । इससे भी दिलचस्प कहानी तो तब हुई जब 1991 के इकतीस जुलाई को एयर मार्शल एस के
मेहरा और एन सी सूरी दोनों को रिटायर होना था लेकिन एस के मेहरा साहब ने सुबह ही
पद छोड़ दिया और दोपहर बाद एन सी सूरी ने वायुसेनाध्यक्ष का पद संभाला । इस तरह से
उनको दो साल का कार्यकाल मिल गया क्योंकि उस वक्त नियम था कि नए वायुसेनाध्यक्ष का
दो साल का कार्यकाल होगा ।
लोकतंत्र में सरकार से जवाब मांगने का हक विपक्ष के पास है लेकिन
आरोप लगाने के पहले सरकार के जवाब का इंतजार भी करना चाहिए । कांग्रेस के एक नेता
ने तो इसको सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की और प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि
वो एक मुस्लिम लेफ्टिनेंट जनरल पी एन हारिज को जनरल नहीं बनाना चाहते । दरअसल
कांग्रेस के नेता यह भूल गए कि भारतीय सेना में शामिल होने के बाद हर जवान या अफसर
सिर्फ और सिर्फ हिन्दुस्तानी होता है वो ना तो मुसलमान होता है और ना ही हिंदू और
ना ही सिख या क्रिश्चियन । सेना को लेकर इस तरह के सांप्रदायिक आरोपों से आरोप
लगाने वाले की मानसिकता ही एक्सपोज होती है । दरअसल इस तरह के आरोप लगाकर कांग्रेस
खुद को सवालों के चक्रव्यूह में फंसा लेती है । बाद में शहजाद पूनावाला के इन
आरोपों को पार्टी के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अनुचित माना । उन्होंने कहा कि हर
चीज में धर्म को बीच में लाना ठीक नहीं है । मनीष के मुताबिक यह मामला वरिष्ठता से
जुड़ा है और उसको उसी आईने में देखा जाना चाहिए । किसी भी पार्टी में ये तब होता
है जब वहां नेतृत्व को लेकर भ्रम की स्थिति रहती है । दरअसल कांग्रेस अभी इसी दौर
से गुजर रही है । सिंगल कमांड नहीं होने की वजह से आरोपों में भी अराजकता दिखाई
देती है ।
संविधान का मुताबिक ये सरकार का अधिकार है कि वो किस पद पर किसको
नियुक्त करे । अगर लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया है
तो वो देश काल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया होगा । लेफ्टिनेंट जनरल
रावत को सीमा पर ऑपरेशन करने का लंबा अनुभव है, चाहे वो जम्मू कश्मीर में हो या
म्यंमार की सीमा पर ऑपरेशन का हो या फिर चीन से लगती पूर्वोत्तर की सीमा पर
प्रॉक्सी वॉर हो । सेनाध्यक्ष को चुनते वक्त इस देश की सुरक्षा के विभिन्न आयामों
और आनेवाली चुनौतियों का ध्यान रखा जाता है । सरकार के सूत्रों के मुताबिक
सेनाध्यक्ष के लिए तीनों के नामों पर विचार किया गया लेकिन देश की सुरक्षा की
मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए जनरल बिपिन रावत को चुना गया । सेना की नियुक्तियों कोलेकर बेवजह का बखेड़ा खड़ा करके सियासी तौर पर
भी कुछ हासिल होगा, ऐसा लगता नहीं है । तो सिर्फ आरोप लगाने के लिए आरोप लगाना वो
भी सेना को आधार बनाकर कितना उचित है इसपर विपक्ष के नेताओं को मंथन तो करना ही
चाहिए ।
( नेशनलिस्ट में 19.12.2016)
No comments:
Post a Comment