साहित्य में विवादों की लंबी परंपरा रही है, कई बार साहित्यक
सवालों को लेकर मुठभेड़ होती है तो कई बार विचारधारा की टकराहट देखने को मिलती है
तो कई बार लेखकों के बीच आरोप प्रत्यारोपों से मर्यादा की रेखा मिटती नजर आती है ।
वर्ष दो हजार सोलह भी इन साहित्यक विवादों से अछूता नहीं रहा । पिछले साल सबसे
बड़ा विवाद उठा नामवर सिंह के नब्बे साल होने के मौके पर दिल्ली के इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय कला केंद्र में दिनभर का जश्न और मंच पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह और महेश
शर्मा की उपस्थिति । प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ने बयान जारी कर नामवर सिंह के
कृत्यों से प्रलेस को अलग कर लिया । इसी तरह का एक विवाद कृष्णा सोबती पर केंद्रित
युवा लेखिका, फोटग्राफर कायनात काजी की किताब के विमोचन के मौके पर हुआ । विमोचन
कार्यक्रम के कार्ड पर सचिदानंद जोशी और विजयक्रांति का नाम देखकर कृष्णा जी ने
लेखिका को विमोचन नहीं करने का दबाव बनाया और कार्यक्रम रद्द हो गया । कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद में पश्चिम बंगाल
के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी का काव्यपाठ के आमंत्रण पत्र पर प्रगतिशील लेखक संघ
के आयोजक के रूप में नाम छपने को लेकर भी विवाद उठा था ।
दिल्ली की हिंदी अकादमी ने हिंदी दिवस के मौके पर सोशल मीडिया पर
हिंदी के प्रचार प्रसार और उत्कृष्ट कार्य के लिए सक्रिय नौ शख्सियतों को भाषादूत
सम्मान देने का एलान किया । लेखकों के नाम को लेकर भ्रम की स्थिति बनी अकादमी ने
पहले कुछ लेखकों को पुरस्कृत होने की सूचना दी और बाद में खेद प्रकट किया । इसको
लेकर खूब हो हल्ला मचा । मैत्रेयी पुष्पा से इस्तीफे की मांग भी उठी थी । इसी तरह
से उत्तर प्रदेश सरकार के थोक में बंटे यश भारती पुरस्कार को लेकर भी साहित्य जगत
उद्वेलित हुआ था । पुरस्कार वापसी के अगुवा अशोक वाजपेयी को बिहार सरकार ने विश्व
कविता सम्मेलन आयोजित करनेवाली कमेटी में मनोनीत किया तो इसको पुरस्कार वापसी के
पुरस्कार के तौर पर देखा गया । हलांकि इस विवाद के उठने के बाद से विश्व कविता
सम्मेलन का आयोजन ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है । अशोक वाजपेयी ने दिल्ली में
अखिल भारतीय युवा लेखक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें प्रतिभागियों की उम्र को लेकर
सोशल मीडिया पर विवाद का धुंआ उठा था ।इसी तरह से एक और बड़ा विवाद व्हाट्सएप के
जरिए उठा । व्हाट्सएप पर वायरल एक आडियो क्लिप में प्रभु जोशी ये कहते सुने गए कि
भालचंद्र जोशी के लिए कहानियां वो लिखा करते थे । जिसका भालचंद्र ने लेख लिखकर
प्रतिवादद किया । साहित्यक पत्रिकाओं में भी
इस विवाद पर जमकर लिखा गया ।
कुछ अप्रिय विवाद फेसबुक पर भी उठे । मास्को में रह रहे अनिल
जनविजय ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर सनसनी फैलाने की कोशिश की कि वरिष्ठ कवयित्री गगन
गिल के लिए वो कविताएं लिखा करते थे । जनविजय ने उससे भी आगे जाकर व्यक्तिगत बातें
लिखी जिसके समर्थन में दो एक लेखक आए लेकिन जब महिला ब्रिगेड ने जनविजय पर हमला
बोला तो वो बैकफुट पर आ गए । गगन गिल फेसबुक पर नहीं हैं पर उनके हवाले से जब ये
बात फेसबुक पर आई कि वो इस मसले में कानूनू कार्रवाई कर सकती हैं तो जनविजय बैकफुट
पर आ गए । इस तरह के गैर साहित्यक विवाद फेसबुक पर उठते रहते हैं जिनमें लेखकीय
मर्यादा तार-तार होती रहती है । फेसबुक पर कुछ भी लिख ने की अराजक आजादी ने
विचारधारा की टकराहट की आड़ में लेखकों ने एक दूसरे पर हमले किए जिनमें बहुधा
लक्ष्मण रेखा लांघी गई ।
No comments:
Post a Comment