वर्ष दो हजार
सोलह बीतने को है, विमर्श के
कोलाहल के बीच साहित्य, संस्कृति और कला के दिग्गजों के निधन से अपूरणीय क्षति हुई
। साल के शुरुआत में ही कथाकार और संपादक रवीन्द्र कालिया का छिहत्तर साल की उम्र में निधन हो गया । कालिया जी की कहानियों ने अपने समय में सार्थक हस्तक्षेप किया था । उनकी किताब ‘गालिब छुटी शराब’ धर्मवीर भारती की ‘गुनाहों के देवता’ के बाद हिंदी में सबसे ज्यादा बिकनेवाली किताबों में से है । कालिया जी
के निधन से साहित्य जगत उबरा भी नहीं था कि निदा फाजली के निधन की खबर आई थी । निदा
फाजली ने शायरी को उर्दू और फारसी की गिरफ्त से आजाद कर आम लोगों तक पहुंचाया ।
ताउम्र निदा हिंदी और उर्दू के बीच की खाई को पाटने में लगे भी रहे । निदा के बाद
काल के क्रूर हाथों ने हमसे उर्दू के सबसे बड़े कहानीकारों में एक जोगेन्द्र पॉल को छीन लिया ।
जोगेन्द्र पॉल के तेरह से अधिक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें खुला,
खोदू बाबा का मकबरा और बस्तिआन शामिल हैं । कहानियों के अलावा पॉल ने कई उपन्यास
भी लिखे जिनमें से एक बूंद लहू की खासी चर्चित रही है । पॉल की ज्यादातर किताबें
हिंदी में भी अनूदित हैं ।
साल 2016 में हिंदी के मशहूर लेखक मुद्राराक्षस का भी निधन हुआ । विचारों से मार्क्सवादी-लेनिनवादी मुद्राराक्षस
ताउम्र अपनी विचारधारा को लेकर मजबूती से साहित्य और समाजकी जमीन पर डटे रहे । बांग्ला की प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता
देवी भी इस साल अपनी महायात्रा पर निकल गईं । महाश्वेता देवी ने हजार चौरासी की मां, अरण्येर
अधिकार, झांसीर रानी, अग्निगर्भा जैसी मशहूर कृतियां रचीं । उनको ज्ञानपीठ
पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, रोमन मैगसेसे अवॉर्ड के अलावा पद्म विभूषण से
भी सम्मानित किया गया था । पंजाबी के मशहूर कथाकार गुरदयाल सिंह भी इस वर्ष हमसे
जुदा हो गए ।उनका उपन्यास मरही दे दीवा पंजाबी साहित्य में बेहद लोकप्रिय है और इस
उपन्यास ने ही उनको उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई । इनके उपन्यासों पर
फिल्में भी बनी हैं । गुरदयाल सिंह को उनके लेखन के लिए प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ
पुरस्कार भी मिला था ।मलयालम के मशहूर कवि ओ वी एन कुरुप का निधन भी साहित्य के
लिए बड़ा झटका था । यशस्वी संपादक और लेखक प्रभाकर श्रोत्रिय भी इस दुनिया को
छोड़कर चले गए । प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपने संपादन से युवा लेखकों की पहचान कर
उनको संस्कारित किया । पूरब के प्रेमचंद कहे जानेवाले विवेकी राय भी इस साल हमसे
बिछुड़ गए । उनकी रचनाओं में गांव अपने समग्र परिवेश के साथ उपस्थित रहता था ।
इनके ललित निबंध हिंदी साहित्य की थाती हैं । विवेकी राय के अलावा हाल ही में
उपन्यासकार ह्रदयेश का भी निधन हुआ । ह्दयेश हिंदी के उन चंद लेखकों में थे जो
खामोशी के साथ बगैर किसी शोर-शराबे के लेखन में जुटे रहते थे । उनके दस के करीब
उपन्यास और दर्जनभर कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।
सैयद हैदर रजा के निधन से कला क्षेत्र को बड़ा नुकसान हुआ । सैयद हैदर
रजा रंगों के माध्यम से भारतीय मिथकों के प्रतीकों का अपने चित्रों में इस्तेमाल
करते हैं । इसी साल मशहूर तबला वादक और गायक लच्छू महाराज भी हमें छोड़कर चले गए ।
मशहूर कलाकार और पद्मविभूषण से सम्मानित के जी सुब्रह्मण्य भी इस साल हमसे बिछड़
गए । इस साल पत्रकारिता को भी एक बड़ा झटका लगा जब वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर
का निधन हो गया । दिलीप उन संपादकों में थे जो इस संस्था की गरिमा और साख बचाने के
लिए अंतिम समय तक संघर्षरत रहे ।
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