Translate

Monday, December 12, 2016

दागियों पर समाजवादी दांव

जिस दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक कार्यक्रम में ये ऐलान कर रहे थे कि सूबे के चुनाव में धर्म और जाति की सियासत पर विकास भारी पड़ेगा उसी दिन शाम को उनके चाचा और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तेइस प्रत्याशियों की सूची जारी कर मुख्यमंत्री के दावों की ना सिर्फ हवा निकाल दी बल्कि आगे क्या होने वाला है इसके संकेत भी दे दिए । अखिलेश यादव जहां पिछले पांच सालों में किए गए अपने विकास के कामों पर और अपनी स्वच्छ छवि पर भरोसा है वहीं शिवपाल सिंह यादव उत्तर प्रदेश में पारंपरिक समाजवादी राजनीति करना चाहते हैं जिसमें ना तो अपराधियों से कोई परहेज है और ना ही जाति की राजनीति से । शिवपाल यादव ने जो सूची जारी की है उसमें अतीक अहमद जैसे अपराधी हैं जिनपर बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या समेत चालीस मुकदमे चल रहे हैं । अतीक अहमद पूर्व में सांसद रह चुके हैं और इस बार पार्टी ने उनको कानपुर की एक सीट से समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया है ।
इसके अलावा जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद से उम्मीदवार बनाया गया है । गौरतलब है कि मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय को लेकर चाचा-भतीजे में तलवारें खिंच गईं थी । चाचा शिवपाल ने पहले विलय का ऐलान कर दिया फिर भतीजे अखिलेश ने उसको रुकवा दिया और अब फिर चाचा ने उस विलय को ना केवल बहाल करवा दिया बल्कि मुख्तार अंसारी के भाई को भी समाजवादी पार्टी से विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बना दिया ।  ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव अपनी विकास की राजनीति के बूते पर आगामी विधानसभा चुनाव में उतरना चाहते हैं जबकि उनके चाचा शिवपाल दागियों और अपराधियों की फौज के साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं ।यहां यह याद दिलाना आवश्यक है कि पिछले विधानसभा चुनाव के ऐन पहले जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबलि डी पी यादव को पार्टी में शामिल किया गया था तब इस वक्त के समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव इसके विरोध में खड़े हो गए थे जिसके बाद पार्टी को अपना फैलसा बदलना पड़ा था । इसका सूबे में बहुत अच्छा संदेश गया था और अखिलेश की छवि और चमक गई थी । अब वो मुख्यमंत्री हैं और उनके चाचा प्रदेश अध्यक्ष, तो फैसले अलग तरीके से हो रहे हैं । अपनी छवि को लेकर खासे सतर्क रहनेवाले अखिलेश यादव के लिए ये दागी उम्मीदावर एक चुनौती की तरह खड़े हैं । अभी अतीक अहमद ने एक बयान देकर मामले को और पेचीदा बना दिया है । अतीक अहमद ने कहा है कि सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की हरी झंडी के बाद ही उनको समाजवादी पार्टी ने अपना इम्मीदवार बनाया है । अतीक अहमद ने दावा किया है कि उनकी मुख्यमंत्री से कई मुलाकातें हुई हैं और उन्होंने और मुलायम सिंह यादव ने ही उनको कानपुर से चुनाव लड़ने को कहा है । उनका दावा है कि मुख्यमंत्री की रजामंदी के बाद ही उनको टिकट मिला है और अगर उनकी रजामंदी नहीं होती तो वो टिकट लेते भी नहीं । अखिलेश खेमे से प्रतक्रिया आनी बाकी है ।
मामला सिर्फ अतीक अहमद और सिबगतुल्लाह अंसारी का ही नहीं है । जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी के बेट अमनमणि त्रिपाठी का टिकट भी समाजवादी पार्टी ने अबतक वापस नहीं लिया है जबकि उसको सीबीआई ने पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया हुआ है । इसी तरह से अगर देखें तो जिस मंत्री राजकिशोर सिंह को अखिलेश ने बर्खास्त किया उसके ही भाई बृजकिशोर सिंह को शिवपाल ने पार्टी का उम्मीदवार बना दिया । जिस मोहम्मदाबाद सीट से शिवपाल ने सिबगतुल्लाह अंसारी को टिकट दिया है वहां अखिलेश की पहल पर पहले राजेश कुशवाहा को टिकट मिला था । इसी तरह से जिस बृजकिशोर सिंह का एमएलसी के चुनाव में अखिलेश ने टिकट काटा था अब शिवपाल ने उसको एमएलए का टिकट दे दिया। शिवपाल और अखिलेश के बीच जो शांति दिख रही थी वो अब संघर्ष में बदलती दिखाई दे रही है । विधानसभा चुनाव के नजदीक आने से ये संघर्ष और तेज होगा । अखिलेश ने भी कुछ दिन पहले जावेद आब्दी को सिंचाई विभाग में सलाहकार बनाकर मंत्री का दर्जा दे दिया था ये वही जावेद हैं जिनको समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में शिवपाल सिंह यादव ने सरेआम मंच पर धक्का देकर भाषण देने से मना कर दिया था ।

समाजवादी पार्टी में सत्ता संघर्ष अपने चरम पर है । चंद दिनों पहले मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को समाजवादी पार्टी के संसदीय बोर्ड का सदस्य बना दिया था और अब इस बात की चर्चा हो रही है कि अमर सिंह पार्टी के स्टार प्रचारक भी होंगे । ये वही अमर सिंह हैं जिनको अखिलेश यादव बिल्कुल ही पसंद नहीं करते हैं । इस पूरे मसले में मुलायम सिंह यादव भी खेलते हुए नजर आ रहे हैं । राजनीति के अखाड़े का ये पुराना पहलवान अपने भाई को भी नाराज नहीं करना चाहता है लेकिन साथ ही ये भी चाहता है कि उनका बेटा भी सियासत की जमीन पर मजबूती से जमा रहे । मुलायम सिंह यादव की ये चाहत ही इस संघर्ष को हवा दे रही है । वो अमर सिंह को भी नहीं छोड़ना चाहते हैं और अपने विश्वस्त प्रोफेसर रामगोपाल यादव को भी पार्टी से निकालकर चंद दिनों में ही वापस ले लेते हैं । पार्टी के मुख्य महासचिव होने की वजह से संसदीय बोर्ड में रामगोपाल यादव की भी चलेगी तो क्या ये माना जाए कि समाजवादी पार्टी के टिकटों का एलान अस्थायी है और चुनाव के पहले इसमें कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं ।    

1 comment:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
धन्यवाद